१.
आसाँ नहीं है युद्ध की विभीषिका को झेलना
खून-खराबा ,टूटे सपने ,रूठे अपने
बचपन उजड़ा,खो गये उबाल सारे जवानी के और सहारे बुढ़ापे के
कहाँ खिलते हैं फूल कब्रिस्तानों पर सदियों तलक
टूटे दिल , ज़ार-ज़ार रोती हुई इंसानियत ,चीखते हुए मँज़र
न कोई मरहम , न कोई भरपाई
भुलाये ही कहाँ जाते हैं सदियों तलक
देश की सीमाओं पर मानवता की जँग हम हार आये हैं
कहने को तो कोई जीतता है ,तोड़ कर किसी के हौसले ,
किसी को लाता है घुटनों पर
आदमी आदमी को सहता नहीं
पीढ़ियाँ भुगततीं हैं सजाएँ सदियों-सदियों तलक
२.
कभी न्याय के लिये ,कभी अन्याय के खिलाफ
कभी वर्चस्व के लिए ,कभी प्रभुत्व के लिए
लड़ते हैं लोग युद्ध
कितनी जिंदगियाँ हो जाती हैं क़ुर्बान
तनी हुई गर्दन के लिए
धकेल देता है युद्ध अर्थ-व्यवस्था को बरसों-बरस पीछे
क्या इसी दिन के लिए आदमी विकास करता है
३.
डरे घुटे हुए लोग , शौर्य से उबलते हुए खून से बिफरे हुए लोग
सभी को चाहिए इलाज , खाना , छत और करुणा
सुविधाओं से वंचित जैसे आसमान से गिरे , खजूर पर अटके हुए लोग
दिन-रात जैसे सूली पर टँगे हुए लोग
जैसे खुदा रूठ गया हो
प्रभुत्व की लड़ाई में पिसते हैं सदा निर्दोष लोग ही
सहमे हुए बच्चे की आँखों में झाँक कर देखो ,
जिसका भविष्य सो गया जागने से पहले ही
दहशत की अनिश्चितता कभी उसे सोने नहीं देगी
अतीत कब यादों से काट सका है कोई
‘ जिओ और जीने दो ‘ ये उक्ति लोग भूल गये हैं
ऊँचाइयाँ छूनीं हैं तो सबको साथ लेकर चलो
माथे के उबाल कभी शान्त रहने नहीं देंगे
ये क्या बोया है कैसी फसलें काटोगे
४.
युद्ध कभी किसी समस्या का हल नहीं होता
ये जन्म देता है अनगिनत समस्याओं को
कर बैठे हो सौदा दुख ,बेबसी ,और बिलखती हुई मानवता का
तरक़्क़ी की अपार सम्भावनाओं के पन्ने रह गये अनखुले ही
प्रगति भी कभी ज़िन्दगी से बड़ी नहीं होती
बनी रहे ये तुम्हारी भी ,हमारी भी , क्या हुआ जो मैंने एक रोटी कम खा ली
मिल-बाँट के खाओगे तो चैन की नींद सोओगे
बिछ जायेगी कदमों में कायनात सारी ही