हौसले मेरे नहीं हैं टूटे हुए
पत्थरों से उलझ कर भी साबुत हूँ मैं
जिन्दगी यूँ कोई गीत , गुनगुनाती रही
तप रहा आसमाँ , राह तपती हुई
मँजिल यूँ मुझे बुलाती लगे
मेरे सिर पर धूप , कुनकुनाती रही
रेगिस्तानों की है यही खासियत
हर कोई तन्हा , अपने दम पर चले
पानी भूल आए घर , प्यास भुनभुनाती रही
समन्दर किनारे पहुँच कर भी तो
रेत तलियों की लहरें ले जाएँ घर
समन्दर हो के सहराँ ,
अपने हिस्से की छाया , कुनमुनाती रही
पत्थरों से उलझ कर भी साबुत हूँ मैं
जिन्दगी यूँ कोई गीत , गुनगुनाती रही
तप रहा आसमाँ , राह तपती हुई
मँजिल यूँ मुझे बुलाती लगे
मेरे सिर पर धूप , कुनकुनाती रही
रेगिस्तानों की है यही खासियत
हर कोई तन्हा , अपने दम पर चले
पानी भूल आए घर , प्यास भुनभुनाती रही
समन्दर किनारे पहुँच कर भी तो
रेत तलियों की लहरें ले जाएँ घर
समन्दर हो के सहराँ ,
अपने हिस्से की छाया , कुनमुनाती रही