जीवन कोई सज़ा नहीं है
दर्द तो है पर कज़ा नहीं है
तेरे साथ है दुनिया मुट्ठी में
वरना कोई मज़ा नहीं है
कितनी कर लीं हमने तदबीरें
अपना कोई सगा नहीं है
भट्ठी में तपता हर कोई
फिर भी देखो जगा नहीं है
सारी राहें रौशन उस से
कहाँ भला वो खड़ा नहीं है
मन है हमारे विचारों के बस में
चेहरे पर क्या जड़ा नहीं है
जीवन कोई सज़ा नहीं है
दर्द तो है पर कज़ा नहीं है
bahut sundar...
जवाब देंहटाएंजीवन कोई सज़ा नहीं है
जवाब देंहटाएंदर्द तो है पर कज़ा नहीं है
Wah! Waise samajh nahee patee hun,ki qaza kise kahte hain!
तेरे साथ तो सब मुट्ठी में
जवाब देंहटाएंवरना कोई मज़ा नहीं है !
बेहद पसंद आयी आपकी रचना ...बधाई !