माँ चलीं गईं दुनिया से ...
आज रोई हूँ कि तन्हां हूँ
उठती है नजर तो पाती हूँ
कि एक अरसा हुआ आपको तो गए
वक्त आता नहीं है कभी लौट कर
और यादों से कभी वो जाता नहीं
वो ख़ुशबू , वो गले लगाना कि जैसे हो रुह प्यासी
वो छाया , वो ममता की डोरी का पलना
जमीं पर न अपने पाँवों का पड़ना
मिलने की ख़ुशी में वो रातोँ का जगना
पकड़ती हैं उँगली , बचपन की यादेँ
सीने में दफ़न वो अपना ख़जाना
अपनी जमीं , अपना ठिकाना
हूँ सिर उठाए आज भी मैं
जो आपने दिया , वो कहाँ था कम
बोलता है सबका बचपन उम्र भर
सहला हैं जातीं यादें आपकी
थोड़ा रुलातीं , थोड़ा हँसातीं
पकड़ में न आतीं
आज रोई हूँ कि तन्हां हूँ