शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2016

इक वो थी दिवाली

इक वो थी दिवाली ,
दिवाली दियों वाली
मुँडेरों पर रौशन कतारें दियों की
हर घर में लटकता दिये का कंडील
लक्ष्मी गणेशा के आगमन की तैयारी
अन्दर-बाहर बुहारा
दिये सा महकता हुआ मन-प्राण , उमंगे टपकती हुईं
यूँ लगता कि पधारे हैं रिद्धि-सिध्दि के दाता गणेश , छम-छम करतीं हुईं माँ लक्ष्मी
ये पण्डित ,ये मन्दिर गुरूद्वारे के लिए मिठाई
ये दरोगा , ये अफसर , इष्ट-मित्रों , काम करने वालों के लिए मिठाई
बच्चों के लिए थोड़ा सा आतिश-बाजी का शगुन
दौड़-दौड़ कर ख़ुशी से न फूले समाते
पास-पड़ोस में प्रसाद की थालियां पहुंचाते

इक ये है दिवाली ,
नकली झालरों सी सजाई , आडम्बर से भरी
आज हर सम्बन्ध को है भुनाया जाता
ओहदे के हिसाब से उपहार पहुँचाया जाता
काम निकलवाने का ये नुस्खा भी अपनाया जाता
नाम हो इसलिए मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाया जाता
नाराज़ न हो जाएँ कही लक्ष्मी गणेश , डर के मारे पूजा भी निबटाई जाती

इक वो थी दिवाली ,
कच्ची मिट्टी सी महकती हुई
इक ये है दिवाली ,
बाज़ार के नकली सामानों से अटी ,
नकली मुस्कराहटों में कहीं खो गये अपनत्व की