मैं कोई नहीं हूँ
कुछ तो हूँ मैं
आस्था और विष्वास का दीपक
जगमगाता हुआ है
क़दमों का मेरे जंगी हौसला
मुस्कुराता हुआ है
कुछ तो मेरे मन ने
सहेजा हुआ है
चलती साँसों को मेरी
महकाया हुआ है
कुछ तो हूँ मैं
सूरज उगता है बस तेरे लिए ....... मौके , हिम्मत और उम्मीद लिए ...... ये सौगात है बस तेरे लिए .....
मैं कोई नहीं हूँ
कुछ तो हूँ मैं
आस्था और विष्वास का दीपक
जगमगाता हुआ है
क़दमों का मेरे जंगी हौसला
मुस्कुराता हुआ है
कुछ तो मेरे मन ने
सहेजा हुआ है
चलती साँसों को मेरी
महकाया हुआ है
कुछ तो हूँ मैं
मत कैद करना
हवाओं को दायरे में
मत रोकना
पँछियों को पिंजरे में
इनकी उड़ान ही तो है
पहचान इनकी
मुड़ के देख
अपनी उड़ानों को
क्या कोई रुका मन्जर
दे सका है सुकूनों को
पँख फैलाते ही पूरा आसमान नजर आता है
हवा अपनी , खुशबू अपनी , खुदा मेहरबान नजर आता है
पँछी अपने , इनकी उड़ानों में पूरा जहान नजर आता है
१.
लबों को सीते वक़्त
मन को भी सी लेना
इसको आदत है
टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर चलने की
अपनी पगडंडी पर
डगमगाता है
सधे क़दमों चलने वालों का
ध्यान नहीं बंटता है
यात्रा का अभिवादन ही
उनके आगे-पीछे बसता है
२.
चलता तो है
डगमगाता है तू
बैसाखी पकड़ता तो है
धराशाई भी हो जाए तो क्या
उठ कर फ़िर से चलने का
जज्बा मचलता तो है
घर नहीं बसते हैं राहों पर
घर बसते हैं चाहों पर
चाहों को जगाना है
निगाह उठा कर , बाहें फैला कर देखो
सिमट आता है आकाश बाहों में
बाहों को फैलाना है
जगा ले हौसले अन्दर
तेरे हौसले की बुलन्दी से ज़माना है
हौसलों को उठाना है
प्यार और खुशी के मोती
पलट कर आते हैं दुगने होकर
दोनों हाथों से लुटाना है
सच और तहजीब से
दीन-दुनिया की रोशनी है
दुनिया को सजाना है
किसी चिँगारी को हवा दे
वो जलना चाहे
तेरे सीने में दफ़न है
वो पलना चाहे
तेरी नींदों में जगी है
तेरे सँग-सँग वो चलना चाहे
कुछ ऐसी फिजाँ दे
तेरी ताकत में वो ढलना चाहे
तेरी मेहनत के दम पर
ही वो खिलना चाहे
मत हैराँ होना
किसी रोशनी में वो रखना चाहे
एक संवेदन शील मन दूसरे का दर्द भी जी लेता है , उसे शब्दों में भी ढाल लेता है | बस ऐसे ही किसी दर्द की नजर ये पंक्तियाँ
क्यों मनाएँ हम
ग़मों की बरसियाँ
बुक्का फाड़ के
रोते हैं अहसास
क्या कोई आसमाँ
मेरा न था
मेरी राहों में क्या
कोई सबेरा न था
क़दमों के निशाँ
कहते हैं रास्ता
दिल जला कर ही सही
अँधेरा कहीं छोडा न था
राहे-वफ़ा की राह पर
जिन्दगी को साथ लेकर
चलते रहे
जिन्दगी का घूँट पीकर
दिये की तरह जलते रहे
जिन्दगी के घूँट ही तो
जिन्दगी हैं
क्यों भुलाएँ जश्न को
क्यों मनाएँ बरसियाँ
इन मरे हिस्सों को जिला लें
सब्र और जश्न को मिला लें
आ थोड़ी राहें सजा लें
जिन्दगी को एतराज न हो
ऐसा कोई मंजर सजा लें
साजिशों में जिन्दगी का कोई सानी नहीं
मरहमों में जिन्दगी सा कोई फानी नहीं
शिकार होते दीन-ईमां , जंग लड़ती आशना
अपनी धड़कन भी पराई , रूह का वो कत्ले-आम
है अदब भी फासले का दूसरा नाम
बोलती हैं दीवारें भी इस तरह
दो घूँट अपनी आशना पी कर
आसमां के गले लग आयें
क्या हर्ज़ है गर , थोड़ी जिंदगानी जी आयें
रे मन
तृष्णा को लगाम दे
हिटलर को मात दे देगी
दूध उफन कर बिखर जायेगा
छीछालेदर कर देगी
परछाईओं के पीछे दौड़ोगे
कुछ भी हाथ न आयेगा
आँखें अभ्यस्त न होंगी तो
सूरज भी नजर न आयेगा
तमाशा बनने से पहले
तमाशबीन बन जाना
चढ़ते सूरज की किरणें
ख़ुद ही तुझे रास्ता देंगीं
मुझे न देना कोई ऐसा पथ
काँटे बिछे हों जिन राहों पर
मैंने कोई कवच नहीं पहना
रूह मेरी है बिना लिबासों के
मुझको मालूम है बिन हवाओं के
कोई सफर नहीं होता
घर में बैठे ही यूँ भी
गुजर नहीं होता
मुट्ठी भर खून रगों में
थपकियों ने उँडेला होता है
काँटे क्योंकर सोख लेते हैं
नमी सारी , लहू लहू होता है
दिल की तपन माथे तक पहुँचती है
काँटा जो चुभे , दिल में ही गड़ा रहता है
बड़ी धूप है रेगिस्तानों में
सफर में कोई आड़ तो चाहिये
काँटों की बाड़ में , कोई खुमार तो चाहिये
काँटा तो दूर हुआ , चुभन अभी बाकी है
जख्म हैं सिले हुए , अहसास अभी बाकी है
ख़ुद को छलने के लिये , उधार ही सही
दिल की दौलत बेशुमार चाहिये