दिल सदा है चाहता
माँ की तरह , दीदी की तरह , बालों को सहलाये कोई
कस के गूँथीं थीं उन्होंने , अब कहाँ वो दो चोटियाँ
अब कहाँ वो डाकिये , जो डाक उनकी भी लाये कोई
अब कहाँ वो चिठ्ठियाँ
एक अरसा हुआ माँ को गये
छोड़ गईं हैं वो दीदी की शक्ल में
वही छत , वही आड़ , दिल में छुपा वही लाड़-दुलार
जब जब सताती हैं राहें जग की
खोल लेती हूँ खज़ाना
ठण्डी हवाएँ , बचपन की वो सरगोशियाँ
जैसे आज भी हूँ मैं तुम्हारी , वही छोटी सी बहना
यादों को सहलाये कोई
लोरियाँ सुनाये कोई