बुधवार, 16 जुलाई 2014

दीदी की तरह


दिल सदा है चाहता 
माँ की तरह , दीदी की तरह , बालों को सहलाये कोई 
कस के गूँथीं थीं उन्होंने , अब कहाँ वो दो चोटियाँ 
अब कहाँ वो डाकिये , जो डाक उनकी भी लाये कोई 
अब कहाँ वो चिठ्ठियाँ 
एक अरसा हुआ माँ को गये 
छोड़ गईं हैं वो दीदी की शक्ल में 
वही छत , वही आड़ , दिल में छुपा वही लाड़-दुलार
जब जब सताती हैं राहें जग की 
खोल लेती हूँ खज़ाना
ठण्डी हवाएँ , बचपन की वो सरगोशियाँ 
जैसे आज भी हूँ मैं तुम्हारी , वही छोटी सी बहना 
यादों को सहलाये कोई 
लोरियाँ सुनाये कोई