बुधवार, 16 जुलाई 2014

दीदी की तरह


दिल सदा है चाहता 
माँ की तरह , दीदी की तरह , बालों को सहलाये कोई 
कस के गूँथीं थीं उन्होंने , अब कहाँ वो दो चोटियाँ 
अब कहाँ वो डाकिये , जो डाक उनकी भी लाये कोई 
अब कहाँ वो चिठ्ठियाँ 
एक अरसा हुआ माँ को गये 
छोड़ गईं हैं वो दीदी की शक्ल में 
वही छत , वही आड़ , दिल में छुपा वही लाड़-दुलार
जब जब सताती हैं राहें जग की 
खोल लेती हूँ खज़ाना
ठण्डी हवाएँ , बचपन की वो सरगोशियाँ 
जैसे आज भी हूँ मैं तुम्हारी , वही छोटी सी बहना 
यादों को सहलाये कोई 
लोरियाँ सुनाये कोई 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (18.07.2014) को "सावन आया धूल उड़ाता " (चर्चा अंक-1678)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  2. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आपका-

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आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है