दिल सदा है चाहता
माँ की तरह , दीदी की तरह , बालों को सहलाये कोई
कस के गूँथीं थीं उन्होंने , अब कहाँ वो दो चोटियाँ
अब कहाँ वो डाकिये , जो डाक उनकी भी लाये कोई
अब कहाँ वो चिठ्ठियाँ
एक अरसा हुआ माँ को गये
छोड़ गईं हैं वो दीदी की शक्ल में
वही छत , वही आड़ , दिल में छुपा वही लाड़-दुलार
जब जब सताती हैं राहें जग की
खोल लेती हूँ खज़ाना
ठण्डी हवाएँ , बचपन की वो सरगोशियाँ
जैसे आज भी हूँ मैं तुम्हारी , वही छोटी सी बहना
यादों को सहलाये कोई
लोरियाँ सुनाये कोई
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (18.07.2014) को "सावन आया धूल उड़ाता " (चर्चा अंक-1678)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
भावप्रणव अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंभावप्रणव अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएं