दिन उड़ गये पँछियों की तरह , खबर न रही
वक़्त की फितरत है , फिसल जाता है हाथों से ,उम्र की ही तरह
अब ये आलम है कि कुछ छूट गया सा लगता है
लम्हा-दर-लम्हा पकड़ पाना भी मुमकिन न था
तुम्हारे घर की बाल्कनी से ,दूर उड़ते हुए प्लेन देख कर
ये ख्याल तो आता था कई बार कि किसी दिन
ऐसे ही प्लेन से वापिसी होगी
जाना तो आने के साथ ही तय था
मगर अहसास उल्टी गिनती का
आया आधे दिन गुजर जाने के बाद
पराया मुल्क भी बड़ा अपना सा लगता है
जिसमे बस गये हों अपने , धड़कनों की तरह
हम लौट आये हैं ,कुछ छोड़ आये हैं
कुछ ले आये हैं साथ , वो अहसास
खिली धूप सा कहता है कानों में कोई
हालो , डाँके शोन , चुइस......
और तुम्हारे शहर का मौसम आँखों में उतर आता है
हालो - हलो ( अभिवादन )
डाँके शोन - धन्यवाद सुन्दर
चुइस - बाय (विदा )
जर्मन में
वक़्त की फितरत है , फिसल जाता है हाथों से ,उम्र की ही तरह
अब ये आलम है कि कुछ छूट गया सा लगता है
लम्हा-दर-लम्हा पकड़ पाना भी मुमकिन न था
तुम्हारे घर की बाल्कनी से ,दूर उड़ते हुए प्लेन देख कर
ये ख्याल तो आता था कई बार कि किसी दिन
ऐसे ही प्लेन से वापिसी होगी
जाना तो आने के साथ ही तय था
मगर अहसास उल्टी गिनती का
आया आधे दिन गुजर जाने के बाद
पराया मुल्क भी बड़ा अपना सा लगता है
जिसमे बस गये हों अपने , धड़कनों की तरह
हम लौट आये हैं ,कुछ छोड़ आये हैं
कुछ ले आये हैं साथ , वो अहसास
खिली धूप सा कहता है कानों में कोई
हालो , डाँके शोन , चुइस......
और तुम्हारे शहर का मौसम आँखों में उतर आता है
हालो - हलो ( अभिवादन )
डाँके शोन - धन्यवाद सुन्दर
चुइस - बाय (विदा )
जर्मन में