मंगलवार, 1 अक्टूबर 2024

A visit to Frankfurt


अभी मैं तुम्हारे शहर से गई नहीं हूँ 
अभी तो मैं बाक़ी हूँ उन अहसासों में 
अभी तो सुनाई देती है मुझे गोयथे यूनिवर्सिटेट और तुम्हारे घर के बीच की सड़क पर हवा को चीरती हुईं गाड़ियों की सरसराहट भी 
अभी तो दिखाई देता है गोयथे की साइड वॉल पर लिखा हेर्ज़िलिख विल्कोमेन भी (herzilich willkomen हार्दिक स्वागत )
तुम्हारे घर ,घर का इण्टीरियर , रास्ते , तुम्हारे शहर के स्टेशन सब मुझे याद हैं , जिन्हें मैंने आँख भर कर देखा 
क़ैद हो गए वो मेरे ज़हन के कैमरे में 
यूँ लगता था कि जैसे इस जनम में दुबारा वहाँ आना हो , न हो 
मन अपनी नाज़ुक उँगलियों से पकड़ लेता है वो सब भी जो है अनकहा , अनछुआ सा 
तुम्हारा शहर मुझे इक बार फिर से पटरी पर ले आया है 
अभी तो ताजा हैं तुम्हारी जादू की झप्पियाँ 
अभी तुम्हारे शहर के क्रोसों ,आइसक्रीम ,फ़्लैमकुकेन और भुट्टों का स्वाद मेरी ज़ुबान से गया नहीं है 
और तुम्हारे बनाये ऐवकाडो डिप ,कॉफ़ी और सैलेडस भी ज़ुबान पर ही हैं 
वो सिर्फ़ स्वाद भर नहीं थे 
उनमें छिपा था मेरी पसन्द के और दुनिया भर के क्यूज़िंस हमें खिलाने का लगाव 
न ही गया है तुम्हारी आँखों में तिरते हुए विष्वास और प्यार का रंग 
अभी मैं तुम्हारे शहर से गई कहाँ हूँ !

सोमवार, 22 जुलाई 2024

माँ तुम अक्सर याद आती हो

माँ तुम अक्सर याद आती हो 

होती हूँ जब-जब निराशा के गर्त में 

तुम  कर सहला जाती हो 

कौन आस-पास घूमा करता है 

दुआएँ तुम्हारी मेरा माथा चूमा करती हैं 


माँ तुम सम्बल , माँ तुम धरती ,माँ तुम अम्बर

तुम होती हो आस-पास 

उस तपिश को क्या नाम दूँ 

एक उजास , एक छाँव आराम की ,

एक सुकून का पलनाबेफ़िक्री का आलम 


बस तुम्हारे बाद अब कहीं कोई गोद नहीं 

जहां मैं सर भी रख सकूँ 

फिर भी तुम ही तुम नज़र आती हो , मुझे मेरे बचपन से अब तक की हर सीढ़ी पर 

मेरे सपनों में आज भी जीती-जागती हू--हू नज़र आती हो 

माँ तुम अक्सर याद आती हो 

बुधवार, 17 जुलाई 2024

बच्चों के दम पर

बच्चों के दम पर भी हम देखते हैं दुनिया 

ये कभी भी , कहीं भी ले चलते हैं 

कुछ भी ख़रीदवा देते हैं 

और हम जैसे अपने माँ-बाप की उसी छत्रछाया में पहुँच जाते हैं 

बचपन के वो नायाब से तोहफ़े , जहाँ वापसी के व्यवहार की कोई उम्मीद ही नहीं 

ये अचानक कोई हमें बेफ़िक्री की सी खुमारी में झुला जाता है 

हाथों से फिसलती हुई उम्र जैसे सुस्ता कर फिर से जी उठती है 

दिल में भरी हुई दुआएँ हैं , आँखों में जैसे एक बार फिर से सितारे टिमटिमा उठते हैं 

सीने में रुकी हुई रफ़्तार फिर से रवानी पा लेती है 

और ज़िन्दगी की दूसरी पारी हसीन हो उठती है 

रविवार, 21 जनवरी 2024

जीने का जज़्बा

अरमाँ की तरह जो संग चले 

बाहों में वो कुछ यूँ भर ले 

जैसे कोई अपना होता है 

जैसे कोई सपना होता है 

कानों में वो कुछ यूँ कहता 

धरती अपनी ,दुनिया अपनी 

मेरे संग खिले , मेरे संग जगे


जीवन की कोई परिभाषा 

कोई मापदण्ड होता है भला 

पकड़ो तो कोई ऐसी बात 

गुड़-चीनी की तो बात ही क्या 

मीठी सी खीर हो जैसे कोई 

भीनी सी ख़ुशबू संग लिए 

दिन-रात पगे ,हर पल महके 


शनिवार, 20 जनवरी 2024

तू हर सू है छाया

तू पत्ते-पत्ते में ,हरी डालियों में 

तू ही तो झूमता है ,गेहूँ की बालियों में 


तू ही प्रेरणा में , तू ही वन्दना में 

तू ही बजता है , समय की तालियों में 


तू नस-नस में ,रग-रग में 

प्राण बन के बहता है , मेरी धमनियों में 


तू ही है चन्दा की चाँदनी में 

तू ही चमकता है हर पहर,सूरज की लालियों में 


है तो हर तरफ़ हमारा ही कोई हिसाब 

उलझे हैं हम अपने ही ,कर्मों की पहेलियों में 


तुझे देखने को चाहिए , इक नूरानी सी नज़र 

तू हर सू है छाया ,जड़-चेतन की हैरानियों में 


सोमवार, 28 अगस्त 2023

सखी-सहेलियों जैसे रिश्तों के लिये

सइयो नी , सइयो नी 

आ दुक्खाँ दे लीड़े धो लइये 

कुझ कह लइये , कुझ सुन लइये 


तेरे वेहड़े धुप्प ही धुप्प 

मेरे वेहड़े छाँ कोई ना 

कट जायेगा रा नाल-नाल चल लइये 


दिल दी हवाँडाँ कदे वण्डियाँ ना 

अक्खाँ दे ज़रिये जो उतरन 

आ रूहाँ दी कुण्डियां खोल लइये 


सइयो नी , सइयो नी 

आ दुक्खाँ दे लीड़े धो लइये 

कुझ कह लइये , कुझ सुन लइये 


आओ कभी फुर्सत में बैठें 

यादों के ताने-बाने खोलें 

दुखती रगों के तार ढीले कर लें 


हौले से छू लें दिल को जो 

उन ठण्डी हवाओं के सदके 

थोड़ा-थोड़ा आराम मिले 

कुछ ऐसे झूले में झूलें 


सहरा में पानी होता कहाँ 

इक दोस्त ही है जो मशक लिए 

थोड़ा-थोड़ा पानी बख़्शे 

राहों के हादसे तो धो लें 


आओ कभी फुर्सत में बैठें 

यादों के ताने-बाने खोलें 

दुखती रगों के तार ढीले कर लें 


सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

हमारी पीढ़ी बहुत एक्सप्रेसिव नहीं है

 हम फ़िफ़्टीज़ ,सिक्स्टीज ,सेवेंटीज के लोग 

हमारी पीढ़ी बहुत एक्सप्रेसिव नहीं है 

हम वाओ ,मार्वलस कह कर एक्सक्लेमेशन मार्क्स वाले रिएक्शन नहीं देते 

हम तो बस हैरानियों पर चुप से , जड़ से ,मूर्तिवत खड़े हो जाते हैं 

तुम समझ सको तो समझ लो 

हमारी आँखों से टपकती हुई कृतज्ञता , प्यार और हैरानी जान सको तो जान लो 

हम तो बस तुम्हारे आस-पास रहना चाहेंगे 

जो कुछ हमें हासिल है , हाजिर कर देंगे 

हमारी सारी दुआएँ तुम्हारे इर्द-गिर्द घूमती हैं , जान सको तो जान लो 

तुम जब भी ख़फ़ा होगे , हम चुप ही नज़र आयेंगे या चुपचाप रो देंगे 

मगर हम नाराज़ नहीं होते 

क्योंकि अपने-आप से भी भला कोई ख़फ़ा होता है  ?

जान सको तो जान लो 

ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा , हम कोई कविता लिख देंगे 

मन तो हमारा भी गाता है ख़ुशी में , रो देता है ग़म में 

हमारी आँखों से बोलता हुआ मौन पढ़ सको तो पढ़ लो 

हमारी पीढ़ी बहुत एक्सप्रेसिव नहीं है