मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

नैनीताल और लकड़ी का घर


लकड़ी का घर है अपना 
जैसे हो कोई हाउस-बोट 
इधर झील है 
झील में चँदा 
हिलते अक्स और छतें हैं ढलवाँ 
उधर पहाड़ है 
खुला आसमान है 
सर पे सूरज रोज है आता 
बहुत बुलाते , उसे गुमान है
बादल में है छुप-छुप जाता 
रोज है सजती चाँद तारों की महफ़िल 
साँझ के हाथों में वरदान है 
रँग जाते हैं ज़ेहन अपने 
चाय का प्याला हो हाथों में 
भर के नज़र जब देखें हम 
खुदा अपना भी कितना मेहरबान है 
सैलानी की आँख से देखूँ 
अपना घर भी अच्छा लगता है 
वही शहर है , हर बार नया सा 
फूलों का इक गुच्छा लगता है 
नैनीताल है , ये नैनीताल है 
रँग-बिरँगा कोई सपना लगता है    

शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

जो अभी हारा नहीं है

दुआ में उठते हुए हाथ भी थक गये हैं 
नाराज़गी भी कर देती है ज़िन्दगी से महरूम 
दरक रहा है वक़्त 
उम्र पसीने-पसीने है 

इकतरफा जतनों से कोई बात कहाँ बनती 
मेरी कश्ती में चन्दा भी है ,चाँदनी भी है 
झील में अक्स भी है 
लम्स , हाथों से कुछ छूट गया है 

मील के पत्थर भी तकते हैं दायें बाएं 
अभी बची है जान मुसाफिर 
परवाज़ को समन्दर है 
धरती और गगन रूठ गया है 

वक्त मेरा सगा हुआ ही नहीं 
उसने वही चीज दबा कर रख ली 
शिद्दत से जो चाही 
अब यकीं के दफ्तर में , दुआ पानी भरती है 
तमन्ना गर्द बुहारती है 
मगर कुछ है , जो अभी हारा नहीं है 

शनिवार, 19 अक्टूबर 2013

जन्म-दिन मुबारक हो तुझे

नर्म सा अहसास कोई निकला है 
मेरा दिल बया का घोंसला हो जैसे 
इठलाती हुई , इतराती हुई ,अन्दर-बाहर जाती हुई 
तेरे प्यार का बिछौना है बिछा हुआ 
तेरे क़दमों से फिजाँ महकती हुई 
आज का दिन इतना खुशनुमा सा क्यूँ है 
आज के दिन नन्हीं चिड़िया ने थीं आँखें खोलीं , हमारी दुनिया में 
आज के दिन दादा , पापा ने अपनी बाहों के हिंडोले में तुझे झुलाया था 
बहना ने अपना गाल तेरे गाल से सटाया था 
घोंसले का तिनका-तिनका बज उठता है संगीत से 
मेरी बया तेरे लिए एक खुला आसमान हो हाजिर 
तू ऊँची उड़ान भरे 
खुदा अपना मेहरबान हो तुझ पर 
गा उट्ठे लम्हा-लम्हा 
जन्म-दिन मुबारक हो तुझे , जन्म-दिन मुबारक हो तुझे 

बुधवार, 16 अक्टूबर 2013

अहम का फन

ज्यादातर लोग किसी से मिलते ही उसकी हैसियत कैलकुलेट करने लगते हैं
यानि इज्जत का पोस्ट-मार्टम करने लगते हैं 
ये हैसियत कई मायनों में बयाँ होती है 
मान-सम्मान ,पैसा ,रौब , दादागिरी ...
कौन कितने पानी में है ?
हिकारत लायक छोटा या फिर चापलूसी लायक बड़ा 
दोस्त बनाने लायक या दूरी रख कर चलने लायक 
अजब सी बात है 
आदमी आदमी नहीं ,पैसे का गुलाम है शायद 
अहम का फन सर उठा ही लेता है 
कहते हैं जरुरत के वक्त मदद-गार ही सच्चा मित्र होता है 
जरुरत के वक्त मित्रता की कलई खुल जाती है 
ये जो दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यों है ?
इसी दुनिया में मगर रहना है 
हर कोई ढूँढता है इक अदद दोस्त , जो वो खुद कभी किसी का बन न सका 
उठता है धुआं जो किसी के दिल से , क्यूँ तेरे दिल से गुजर न सका ...?

गुरुवार, 26 सितंबर 2013

सोहनी के हिस्से में अक्सर

ज़िन्दगी की उलझनें सुलझाते-सुलझाते धरा की न जाने कौन सी बात अम्बर को चुभ गई ...सीने की सारी नमी खत्म हो गई ...

माथे की लकीरें बोलें न 
किस्मत के भेद वो खोलें न 

तपती धरती और दरारें 
रूखा सीना अम्बर का 
आँख पनीली, प्यास है गहरी 
टूटा दिल है धरती का 

छोड़ आये हैं साहिल को 
और लौटना नामुमकिन 
कश्ती है बीच समन्दर में 
और तैरना नामुमकिन 

इन आती-जाती साँसों का 
कोई तो मोल हुआ होता 
माटी का दोष नहीं है 
सोहनी के हिस्से में अक्सर 
बीच भँवर विस्फोट हुआ 

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

और तुम उफ़्फ़ भी नहीं करने देतीं

ज़िन्दगी किस कदर ख़ूबसूरत मैंने तुम्हें देखना चाहा
मुट्ठी से हर बार फिसल जाती हो
और उफ़्फ़ भी नहीं करने देतीं
ये किस मोड़ पे ले आती हो मुझे

धीमी आँच पर हाँडी में पका सालन बहुत बिकता है 
सोंधी मिट्टी की महक सब को भाती है 
कहाँ तो पत्ते के खड़कने से भी डर जाता है दिल 
जँगल में चहल-कदमी करता हुआ 
किस बिना पे कोई जीता है 

ज़िन्दगी पी तो लूँ तुम्हें 
तुम मुझे मिटाने पे आमादा हो  
और उम्र के इस जश्न में रोना भी मना है 
फिर तुम उफ़्फ़ भी नहीं करने देतीं 

मेरे हिस्से की धूप से धूमिल पड़ गये हैं रँग तुम्हारे 
विष्वास की कूची से सहला रही हूँ मैं 
यूँ दिन-रात जिए जा रही हूँ मैं 
और तुम उफ़्फ़ भी नहीं करने देतीं 

बुधवार, 7 अगस्त 2013

नींव हिलाते लोग मिले

कैसे-कैसे लोग मिले 
ऐसे वैसे लोग मिले 

इक भी मिला न मन का साथी 
ऐसे कैसे सँजोग मिले 

खेल रहे हैं जज़्बातों से  
तभी तो मन के रोग मिले 

दुनिया का दस्तूर तो देखो 
वफ़ा के बदले जोग मिले 

लुभावने चेहरों को लेकर 
मतलब से सारे लोग मिले 

देख लिया दुनिया को हमने 
सच्चे बन कर सोग मिले 

सच्चे दिल पर साहिब राजी 
बेशक अक्सर नींव हिलाते लोग मिले 




रविवार, 28 जुलाई 2013

पानी पर तेरा चेहरा

पानी पर तेरा चेहरा
ख़्वाबों ने बनाया
कई कई बार ...
रँग हकीकत ही न भरने आई


चलती फिरती मूरत में
ईमान का रँग
थोड़ा ज्यादा होगा ...
वो शहजादा होगा
हसरत कहने आई

पकड़ के आयेगा जब वो
मेरे ख़्वाबों की उँगली
नाक-नक़्शे तस्वीर में
जी उट्ठेंगे ...
महक उट्ठेगा घर अँगना
खुशबू सी आई

रास्ता देख रही है कलम
दम साधे हुए हैं अल्फाज़
वो रुत आई कि आई ...

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

बुधवार, 17 जुलाई 2013

दुनियाँ-जहान की खुशियाँ तुम्हें मिलें

बेटे ने चार्टर्ड-एकाउनटेंट की फ़ाइनल परीक्षा डिस्टिंक्शन के साथ पास कर ली , मन बाग़-बाग़ हो उठा ....

दुनियाँ-जहान की खुशियाँ तुम्हें मिलें 

ये जो चाँद मुस्कराता है ,
आसमान सी ऊँचाइयाँ तुम्हें मिलें 

वो कौन सी डगर है ,
खिले हों फूल हर तरफ , अमराइयाँ तुम्हें मिलें 

गर धूप हो कहीं तो ,
ममता की छाँव सी , पुरवाइयाँ तुम्हें मिलें 

हीरा भी तो पत्थर ही है , 
तराश लो , कोहेनूर सी रश्मियाँ तुम्हें मिलें 

ज़िन्दगी खुद ही न्यामत है ,
सफलता है सोने पे सुहागा , हर बार तुम्हें मिले

चलो झूम लें सुरूर में , 
खुमार में , दुनियाँ-जहान की खुशियाँ तुम्हें मिलें 



शनिवार, 6 जुलाई 2013

ये पूछ तू मेरे दिल से

छोटी बहन जैसी भांजी , सात जुलाई ...जन्म-दिन ...मन जैसा बोल रहा था वैसा ही लिख दिया ...

मेरी बहना ,तू किसी और ही मिट्टी की है 
किसी और ही दुनिया की है 
ये पूछ तू मेरे दिल से 

तेरी आँखों में हैं झिलमिल तारे 
तेरी बातोँ से महकता है समाँ 
तेरे आने से खिलता है रूहे-चमन 

वो बचपन की जमीं , मिट्टी की महक 
चल रही है आज भी मेरे साथ 
सीने से हूँ लगाये हुए 

तेरी आँखों में है इरादों की चमक 
तू जो चाहे तो झुठला दे सारी दुनिया 
ये आसमाँ भी झुके तेरे आगे उकडूँ हो कर 

तेरी राहों में बिछे हों फूल ,न हो नश्तर कोई 
ये दुआ पहुँचे तुझ तक , ठण्डी हवा बन कर 
दुनिया में चमके तू सितारा बन कर 

मेरी आवाज में सुनने के लिए यहाँ क्लिक कर सकते हैं ...
sujata.wmasujata.wma
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शुक्रवार, 21 जून 2013

नामोँ-निशाँ न कल का

उत्तरा-खण्ड में हुई भारी तबाही से उपजी ये पंक्तियाँ ...

त्राहि-त्राहि कर उठा हिमालय ,
फटा है सीना धरती का 
केदार-नाथ , भगवान शिव की नगरी ,
और ताण्डव जल का 
किस्मत के आगे हर कोई हारा ,
कहाँ ठिकाना पल का 

शिव है आदि ,अन्त भी शिव ही 
एक अकेला शिव ही सत्य है 
एक प्रवाह में बहे सभी 
नामोँ-निशाँ न कल का 

ढह गईं इमारतें ताश के पत्तों सी 
लाया सैलाब है पत्थर ,लाशें ,
मौत का ताण्डव , उजड़ा मन 
और ज़िन्दगी सोच रही है 
अपने छूटे , सपने रूठे 
बेकस हाल है मन का 

टूटी छत है , पेट में दाना नहीं अन्न का 
ये तो बताओ , कहाँ है मरहम 
यादों के रिसते जख्मों का 
त्राहि-त्राहि कर उठा हिमालय ,
फटा है सीना धरती का 

गुरुवार, 30 मई 2013

ये लीची और आम के पेड़

ये आँगन में खड़े लीची और आम के पेड़  
झुक गईं हैं डालियाँ फलों के बोझ से 
बरसों से खड़े हैं राह तकते 
बोता है कोई और , खाता है कोई और 

जीते हैं हम अपने जतनों से 
पाते हैं सदा फल अपने कर्मों का 
फलदार हों , छायादार हों 
कौन आता है तेरे साये में पलने को 

दिल ने माँगा सदा पुराना 
ज़ेहन आगे देख न हारे 
नन्हें पौधे जवाँ हुए हैं 
और जवाँ दिल हुए हैं बूढ़े 
झुक-झुक आई हैं डालियाँ 
धरती से कुछ कहती हुईं 
हजारों मील दूर है कोई 
मिट्टी की महक को सीने से लगाये हुए 
कोई कैसे है इन नजारों को भुलाये हुए 

रविवार, 12 मई 2013

माँ वो हस्ती है

माँ वो हस्ती है जिसे ,यादों से मिटाना नामुमकिन 
जमीं पर चलाती है जो उँगली पकड़ , 
आसमाँ ओढ़ाती है दुआओं का जो ज़िन्दगी भर 

अहसास की खुशबू है 
अनमोल सा रिश्ता है 
आराम की छाया है 
हर नींव में मुस्कराती है वो 

दामन काँटों से भरा 
फूलों सा सहलाती हर दम 
हस्ती गँवा कर भी 
हर सू नजर आती है वो 

मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

कभी जो नाम

कभी जो नाम तुमने हमें दिया था 
अब न वो याद है , न चाहत ही बाकी 
वक्त मिटा देता है क़दमों के निशाँ 
यूँ ही नहीं कहते मरहम इसको 
ये तो आदमी की फितरत है 
कुरेद-कुरेद के ज़िन्दा रखता है ज़ख्म अपने 
उस ओर से अब कोई ,
आवाज़ न लगाये मुझको 
मैं बहुत दूर चली आई हूँ 
यूँ तो अब असर होता नहीं 
रंजो-गम तन्हाई का 
वो लड़क-पन बहुत पीछे छोड़ आई हूँ 
न वो दिल है , न नज़ारे हैं 
बेमायने हुए सारे 
फिर भी न छेड़ना तुम कोई तार 
मुझे आज़माने के लिये 
कभी जो नाम तुमने हमें दिया था 



गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

पूरब की ओर से

सूरज चढ़ता है पूरब की ओर से 
कभी चढ़ तू मेरी गली के छोर से 
मिट जाएँ भरम मेरे सारे 
बाँध लूँ मैं तुझे किसी डोर से 

गेहूँ की बालियाँ हैं सुनहरी 
खेत नाचते हैं जैसे किसी मोर से 
टूटा मेरा ही नाता है देखो 
दूर बैठी हूँ मैं किसी भोर से 

मन के घोड़े दौड़ा लें चाहे जितना 
बाँधे वहीँ खड़ा है कोई जोर से 
हाँफ गई है मेरी सारी कामना 
सारे शिकवे उसी चित-चोर से 

पवन ,बरखा ,बदरी ,मौसम 
गया कोई नहीं है छोड़ के 
अपने भाग टटोलूँ बैठे-ठाले 
बिजली चमके तो सूरज की ओर से 

शनिवार, 30 मार्च 2013

सुर-ताल पे ला

चीज कीमती टूटती है तो दुख होता है 
काँच का सामान खरीदा है तो 
उसकी टूटन भी साथ खरीद के ला 

जरुरी नहीं कि हर चमकती चीज वफ़ा ही हो 
काँच भी हीरा होने का भरम देता है 
तराशने के लिये पहले उसे आँच पे ला 

दिले-नादाँ ये अक्सर होगा 
रातों को उजाला न मय्यसर होगा 
गमें-दौराँ पहले धड़कन को सुर-ताल पे ला 

बुधवार, 20 मार्च 2013

विश्व गौरैय्या दिवस

भोली-भाली प्यारी-प्यारी , नन्ही चिड़िया 
तुझ बिन सूने घर-आँगन और द्वार-अटरिया 
चूँ-चूँ करती आती चिड़िया 
मुहँ में दाना भर उड़ जाती चिड़िया 
तिनका-तिनका जोड़ घोंसला , कारीगर बन जाती चिड़िया 
नन्हें बच्चों की चोंचों में , दाना रख-रख आती चिड़िया 
चिड़िया चिड़ा दुलारा उड़ते सँग-सँग , मन ही मन हर्षाती चिड़िया 
इक दिन उड़ें तो लौटें न घर , बच्चों बिन अकेली रह जाती चिड़िया 
रोज सुबह दस्तक देती है , मन उपवन महकाती चिड़िया 
नन्ही जान है बया-गौरैय्या , फुदक-फुदक कर मन बहलाती चिड़िया 

शुक्रवार, 8 मार्च 2013

जीवन के मन-भावन रँगों में

महिला-दिवस पर ...

नारी होना अभिशाप नहीं 
धरती बनना , ये सबके बस की बात नहीं 

माँ बेटी बहन बहु से रिश्तों से अलंकृत 
सजता उपवन , खुशबू बनना क्या खास नहीं 

सँग-सँग चलती , कभी पीछे-पीछे 
कभी प्रेरणा बन आगे-आगे , क्या तेरे मन की बात नहीं 

नाजुक है फूलों से भी बेशक 
काँटें भी रख लेती सीने में , क्या आदर्शों को मात नहीं 

कभी आड़ बने , कभी छत बन कर 
तेरे हिस्से की धूप सहे , है क्या वो तेरा अपना आप नहीं 

श्रद्धा है वो , विष्वास है वो 
जीवन के मन-भावन रँगों में , है क्या उसका मुखड़ा साथ नहीं 

गौरव भी है , वैभव भी है 
कन्धे से कन्धा मिला चलती , क्या सौभाग्य हमारे साथ नहीं 

बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

मानिनी की जान गई

और जब आया सूरज 
मानिनी रूठ गई 
तुम सूरज हो 
हमने तुम्हें माना है 

रोज आता है धरा पर 
जायेगा भी कहाँ 
मानिनी जान गई 

रुई की तरह धुन-धुन कर 
कलेजा छलनी हुआ 
वो चले अपने रस्ते पर 
मानिनी की जान गई 

मनुहार करनी नहीं आती सूरज को 
थक के सो जाता है 
हर सुबह खड़ा है वहीँ 
मानिनी भूल गई 

उम्मीद वही , ज़िन्दगी भी वही 
सारी दुनिया एक तरफ 
अपने मन के मौसम तो 
सूरज के साथ खड़े 
क्यूँ मानिनी रूठ गई ...


रविवार, 17 फ़रवरी 2013

बर्फ के कतरे से

.
बर्फ के कतरे से यूँ पड़ने लगे हैं 
डाल से हरसिंगार की ,फूल ज्यों झरने लगे हैं 

बरसते हैं उपहार ऐसे भी
मौन कितना है मुखर , मन भीगने लगे हैं 

बादल ने बरसाया प्यार कतरा-कतरा 
धरती अम्बर कुछ यूँ मिलने लगे हैं 

कर लिया है श्रृंगार प्रकृति ने 
ऋतुओं के घर मेले लगे है

पेड़-पर्वत , घरों की ढलवाँ छतें 
ओढ़ चादर चाँदनी की ,दमकने लगे हैं 

किसी और ही दुनिया में आ गये हैं 
उजाले से चारों तरफ पड़ने लगे हैं  

खबर लग गई है सैलानिओं को 
कुदरत के हसीन नज़ारे भाने लगे हैं 


शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

दाना-दाना निगलाया आशा का

तिनका-तिनका चुन कर नीड़ बनाया आशा का 
कर पायेंगे , उड़ पायेंगे , दिन अच्छे भी आयेंगे 
दाना-दाना निगलाया आशा का 

कोई टहनी , कोई शाखा , कोई जमीं , कोई आसमाँ 
नन्हें पँखों को सहलाया , दिन अच्छे भी आयेंगे  
दाना-दाना निगलाया आशा का 

भरते हैं घूँट भी हम अक्सर किरणों के प्याले से 
आएगा सबेरा ,निकलेगा सूरज , विष्वास दिलाया 
दिन अच्छे भी आयेंगे 
दाना-दाना निगलाया आशा का 

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

मैं यहीं कहीं हूँ

इन्सानियत का चेहरा बस भगवान जैसा ही है 
भगवान को देखा तो नहीं है 
महसूस किया है बस  
नम सीने में जैसे रौशनी सी उतर आती है 
इन्सान ज़िन्दगी भर ज़िन्दगी को खोजा करता 
ज़िन्दगी कहती है , मैं यहीं कहीं हूँ ,तेरे आस-पास 
तुम शिकन ही शिकन देखा करते 
मैं निश्छल हूँ , किसी बच्चे के चेहरे की तरह 
मासूमियत , इन्सानियत और भगवान में कोई ज्यादा फर्क नहीं है 
शर्त बस एक ही है कि कोई शर्त न हो 
सीने में हो लबालब भरा प्यार , विष्वास हो , बेफिक्री हो 
जो है यही है , बस आज ही है 

सोमवार, 28 जनवरी 2013

रिश्तों को चाहिये

कड़वे से घूँट 
सब्र के प्याले से 
हाय क्या अन्दाज़ हैं 
दर्द के निवाले से 

पाए हैं ज़ख्म 
गुलाबों की चाह में 
ज़िन्दगी की राह में 
क़दमों तले छाले से 

आपका हमारा साथ 
बस यहीं तक था 
रिश्तों को चाहिये 
जमीं भी हवाले से 

चला के पानी पे 
भला क्या पायेंगे 
बुलबुले जुगनू से 
महज़ उजाले से 

गढ़ता है वक्त 
भट्टी में कुन्दन को 
ज़िन्दगी के ये भी 
अन्दाज़ हैं निराले से 

गुरुवार, 17 जनवरी 2013

रवानी की तरह चल

वक्त देता नहीं मोहलत 
कहानी पूरी हो जाती है 
फिसल जाती है हाथों से 
ज़िन्दगानी अधूरी हो जाती है 

ज़िन्दगी,  ढीठ हो जाने तलक 
या पिघल जाने तलक 
इम्तिहान है शायद 
फिर न बचता है तू 
न ज़िन्दगी ही बच रहती है ,
सूनी हो जाती है 

दूर के मकान से  
धुआँ-धुआँ सा उठता हो जैसे 
कोई नहीं है तेरे लिए 
जलना है तो औरों के लिए जल 
नमी तेरी ही मिटा डालेगी तुझे 
बुझते हुए हौसलों में ,
रवानी की तरह चल 
रात भी सुबह सी सुहानी हो जाती है ,
कहानी हो जाती है


वक्त देता नहीं मोहलत 
कहानी पूरी हो जाती है 
फिसल जाती है हाथों से 
ज़िन्दगानी अधूरी हो जाती है 



शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

Happy Daughter's Day

International Daughter's Day 


बेटी , जिगर का टुकड़ा 
फूलों का जैसे मुखड़ा 

बेटी है दिल की धड़कन 
जैसे हो कोई दौलत 

बेटी है घर की ज़ीनत 
दिन-रात जैसे महके 

बेटी है अपना आप 
हसरतों का जागता रूप 

बेटी है मीठा कर्ज़ 
हँस-हँस के भोगें मर्ज़ 

बेटी का दुख जन्जीरें 
दुखती रगें न कोई छेड़े 

बेटी है कोई नेहमत 
खुदा की हो जैसे रहमत 

झोली में माँ की गुलशन 
सींचे जो दुआओं से 

दिल में नमी है इतनी 
आँखों में उतरे मौसम 

आसमाँ हो उतरा जैसे 
जगत है अपने घर में