कभी संध्या कभी सबेर
बस थोड़े से पल लगते
जिन्दगी के हाथों में बटेर
जमीन और आसमाँ के दरमियाँ
एक पतली सी लकीर
जितने भी सपने बुनो
जमीं खिसकी तो बने फ़कीर
धूप और छाया तकते
कच्ची वय के अबीर
जाने कब सो जाता
राह तकते तकते जमीर
सूरज उगता है बस तेरे लिए ....... मौके , हिम्मत और उम्मीद लिए ...... ये सौगात है बस तेरे लिए .....