मंगलवार, 24 मई 2011

जमीं खिसकी तो बने फ़कीर

रात और दिन का मेल
कभी संध्या कभी सबेर
बस थोड़े से पल लगते
जिन्दगी के हाथों में बटेर

जमीन और आसमाँ के दरमियाँ
एक पतली सी लकीर
जितने भी सपने बुनो
जमीं खिसकी तो बने फ़कीर

धूप और छाया तकते
कच्ची वय के अबीर
जाने कब सो जाता
राह तकते तकते जमीर

शनिवार, 7 मई 2011

माँ

कम शब्दों में माँ की परिभाषा

माँ स्नेहमई
माँ त्यागमई
माँ कर्म की प्रतिमूर्ति
माँ छाया
माँ हिफाज़त
माँ इक सहेली
सच्ची हितैषी
सबसे बढ़ कर
जैसे हो अपना आप

माँ आड़
माँ छत
माँ दुआ
ताउम्र चलती साथ
खुशनुमा अहसास सी

माँ चलीं गईं इस दुनिया से , मगर मेरे मन पर जो छाप छोड़ गईं ....

ऐसी थीं मेरी माँ देखो
हालात के हाथों हिलीं नहीं
दुक्खों में कभी न डोलीं माँ
कर्तव्य की थीं साक्षात मूर्ति
जीते जी कुछ न भूलीं माँ
स्नेह भरी , ममता से भरी
गुस्से में कभी न बोलीं माँ
अनुशासन वो पिता का था
जिसके रँग में हो लीं माँ
और सहज हो हँस देतीं
ऐसी थीं मेरी भोली माँ
एक न्यामत हो जैसे
अकथ अबूझ पहेली माँ
ऐसी थीं मेरी माँ देखो

रविवार, 1 मई 2011

और युगों सा बीत गये

ख़ामोशी को पढ़ना आता है
कितने किनारे टूट गये
एक टाँग पर खड़े रहे हम
देखो हमको चलना आता है

धरती अम्बर रूठ गये
और सहारे छूट गये
रात सा साथी पाया हमने
और युगों सा बीत गये

झिलमिल तारों को देखा है
अपने सितारों को देखा है
बीज तो फूलों के बोते सभी
उगता वही जो किस्मत में बदा है

गढ़ देते हम कितने नगमें
शान में तेरी ऐ मौला
उम्मीद का दामन पकड़े हुए
रात और दिन से छूट गये