सोमवार, 15 सितंबर 2014

जन्नत के आँसू पोंछे कौन...

१. 
बेनूर है हर चेहरा 
बेरँग है कश्मीर 
उड़ गई है रँगत जन्नत की 
कितनों ने खो दिये अपने ,अपना घर-बार 
तहस-नहस हो गया सारा सँसार 
उजड़ गया है दिल का चमन 
वो जो भरे पेट मुस्कुराया करते थे ,
उन्हें रोटी के निवाले पे भी लड़ते देखा 
हाय कोई तो लौटा दे वही दिन 
कोई तो पिला दे , दो बूँद ज़िन्दगी की 
२. 
ऐ झेलम , करम कर 
बहुत दिन हुए हैं , गम को मेहमाँ किये हुए 
उफन कर बही जो तू ,
बहा ले गई अरमाँ सारे 
मुँह का निवाला भी छूट गया 
उजड़े गुलशन को किस ओर से सँवारूँ 
अब तो हसरत करने का करम कर 
३. 
सूरज थर-थर काँप रहा है 
बादल की करनी ढाँप रहा है 

बादल ने जो आँसू बहाये 
झेलम तू क्यों आपा खोई 

इतने सीनों से उठता धुआँ 
सूरज के मन में झाँक रहा है 

जन्नत के आँसू पोंछे कौन 
किस काँधे पर मिलेगा चैन 

महज़ खबर ये नहीं है देखो 
लगा है जीवन यहाँ दाँव पर 

अपनी दुनिया में सब खोये 
बोलो बोलो जागा कौन 

जन्नत के आँसू पोंछे कौन... 

बुधवार, 3 सितंबर 2014

साईं बाबा हों या राम हों

ये आस्था का सैलाब है 
साईं बाबा हों या राम हों 
महान-कर्ता को ,उसके जीते-जी ,कहाँ हम पहचानते 
मरने के बाद ही उसे ,उसे भगवान मानते 
ये हमारी सँस्कृति है के गोबिन्द से ज्यादा हम ,गुरु को पूजते 
गुरु हमें भगवान से मिलाये , सन्मार्ग दिखलाये 

उमँगेँ जब टुकड़ा-टुकड़ा होतीं 
चाहतीं हैं किसी विष्वास की नाव चढ़ जाना 
विष्वास ही तो आदमी के क़दमों में दम भरता 
ये मेरा देश है जहाँ ऋषि-मुनि और पेड़-पौधे भी पूजे जाते 
आस्था ही है जो गँगा को गँगा माँ माने 
वरना तो वो है बहता पानी 
आस्था ही है जो कितनों को एक सूत्र में पिरोये हुए 

चुग ले कोई ,मोती अगर ,आस्था की झील से 
जीने दे उसे , भगवान का ही नूर है , झिलमिला कर दुनिया को चलाये हुए