चिया चली गई ससुराल
आँखों में सितारे भर ,
लहँगा पहन ,चुनरी ओढ़ ,
डाल कर उसके हाथों में हाथ
सोचा भी बहुत था ,
लिखा भी था
बोला मगर कुछ भी न गया
न तो गाये विदाई के गीत
न ही सुनाये स्वागत के बोल ,जो मुस्कराये मनमीत
रुँधे गले से जो भी सुनाती
उतर आता सावन तेरी अँखियों में
और तेरी तकलीफ मुझे गवारा न होती
उसी दिन विदा हो जाते हैं बच्चे घर से ,
जिस दिन पढ़ाई या जॉब के लिए घर छोड़ जाते हैं
मगर ये बदलाव तो बहुत बड़ा है
अब न वो बचपन का घर होगा
नई नई सी फिजा होगी
अब बदल गया है तुम्हारा पता
छुट्टियों में तुम्हारी मन्जिल होगी पिया का घर
इक पल उदास होती हूँ
तो दूसरे ही पल मुस्कराने लगती हूँ
इस दिन के लिए तो तैयार रहना था मुझको
अपने घर में तू चहकती मिले
कलीरों के लश्कारों सा तेरा जहाँ चमके
माँ के अँगना की छाँव तो हमेशा से तुम्हारी है
घर-द्वार हमेशा स्वागत में रहेंगे
ये पल , ये लम्हें यादों में बस जायेंगे
सीने में तुम अक्सर यूँ ही मुस्कराओगी
चूड़ा पहने ,कलीरे छनकाती ,ज़िन्दगी की नई शुरुवाद करतीं