अमर उजाला में कविता छपने पर चेक प्राप्त हुआ ,बरबस मन ने कुछ पंक्तियाँ लिख डालीं ।
कौन पैसों के लिए लिखता है
हम तो लिखते हैं कि कुछ कदम चल पायें
हमको तो ये ईनाम दिखता है
चलते चलते कोई पल बहार बन आए
शब्द कब किसी की जागीर हुए
रोना हंसना बन भावों में उतर आए
शब्द फूल बन खिला करते हैं
गर दिल के रागों को जुबान मिल जाए
क्यों खर्चू ,सजा लूँ तमगों की तरह
कीमती लम्हों को थोड़ा ठहराव मिल जाए
हम तो लिखते हैं कि कुछ कदम चल पायें
वरना रुक गए थे ,ठगे से, ज़माने की रफ़्तार देखते हुए