बुधवार, 19 दिसंबर 2012

माँ ! मैं जीना चाहती हूँ

पैरामेडिकल की छात्रा के साथ दरिन्दगी ...एक जँग अभी अभी हारी है ...दूसरी जँग ज़िन्दगी और मौत के बीच झूलते हुए उसने कहा ..माँ ! मैं जीना चाहती हूँ ....

किसने देखा है ज़िन्दगी को मौत के बाद 
माँ ! मैं जीना चाहती हूँ 
देखना है चेहरा हैवानियत का दिन के उजाले में 
कोई शर्म , कोई पछतावे का अँश भी है क्या बाकी 
इन्सानियत तार तार हुई , मेरे जिस्म और रूह की तरह 
कोई टाँका है किसी के पास , कोई मरहम है क्या 
मिटा दे जो दिल के घाव 
मैं जिन्दा रहूँगी , कोई शम्मा जलेगी उस अँधेरी रात के बाद 
बदल डाला है जिसने मेरी दुनिया का नक्शा 
एक धागे का साथ जरुरी है 
किसने देखा है शम्मा को बूँद बूँद ढलते हुए 
कितना अँधेरा है माँ 
उजाले की किरण डर रही है पाँव रखते हुए 
कोई छलाँग , कोई नींद , पुल सी कोई भरपाई न 
माँ ! मैं जीना चाहती हूँ 
तेरी गोद में सर रख के , जी भर के रोना चाहती हूँ 

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

लम्हे भर की बात नहीं

सपनों वाली रात नहीं 
दिन के उजाले साथ नहीं 
एक ज़रा सा दिल टूटे तो 
ये दुनिया अपने पास नहीं 

कहने लगे अपनी बातें 
रूह भटकती साथ नहीं 
मेरे मन की बात ही है 
क्या तेरे मन की बात नहीं 

मिल बैठें जो हम तुम दोनों 
ऐसे तो हालात नहीं 
चलना युगों तक , है ये 
लम्हे भर की बात नहीं 

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

गली गली फिर मीरा

गली गली फिर मीरा , बावरी होई 
पीड़ मीरा की , न जाने कोई 
जा तन लागे , जाने सोई 

इक तो दुनिया न अपनी होय 
दूजे राणा जी न समझे मोय 
कान्हा से प्रीत लगा बावरी होई 

प्रीत के रँग में मन रँग बैठी 
दूजे विरह का स्वाद चख बैठी 
तड़प मीरा की साँवरी होई 

धुन तो वही है बोले न मीरा 
इकतारे की धुन में देखो बोले पीड़ा 
पीड़ा भी बाकि चाकरी होई 


गली गली फिर मीरा , बावरी होई 
पीड़ मीरा की , न जाने कोई 
जा तन लागे , जाने सोई