पैरामेडिकल की छात्रा के साथ दरिन्दगी ...एक जँग अभी अभी हारी है ...दूसरी जँग ज़िन्दगी और मौत के बीच झूलते हुए उसने कहा ..माँ ! मैं जीना चाहती हूँ ....
किसने देखा है ज़िन्दगी को मौत के बाद
माँ ! मैं जीना चाहती हूँ
देखना है चेहरा हैवानियत का दिन के उजाले में
कोई शर्म , कोई पछतावे का अँश भी है क्या बाकी
इन्सानियत तार तार हुई , मेरे जिस्म और रूह की तरह
कोई टाँका है किसी के पास , कोई मरहम है क्या
मिटा दे जो दिल के घाव
मैं जिन्दा रहूँगी , कोई शम्मा जलेगी उस अँधेरी रात के बाद
बदल डाला है जिसने मेरी दुनिया का नक्शा
एक धागे का साथ जरुरी है
किसने देखा है शम्मा को बूँद बूँद ढलते हुए
कितना अँधेरा है माँ
उजाले की किरण डर रही है पाँव रखते हुए
कोई छलाँग , कोई नींद , पुल सी कोई भरपाई न
माँ ! मैं जीना चाहती हूँ
तेरी गोद में सर रख के , जी भर के रोना चाहती हूँ
किसने देखा है ज़िन्दगी को मौत के बाद
माँ ! मैं जीना चाहती हूँ
देखना है चेहरा हैवानियत का दिन के उजाले में
कोई शर्म , कोई पछतावे का अँश भी है क्या बाकी
इन्सानियत तार तार हुई , मेरे जिस्म और रूह की तरह
कोई टाँका है किसी के पास , कोई मरहम है क्या
मिटा दे जो दिल के घाव
मैं जिन्दा रहूँगी , कोई शम्मा जलेगी उस अँधेरी रात के बाद
बदल डाला है जिसने मेरी दुनिया का नक्शा
एक धागे का साथ जरुरी है
किसने देखा है शम्मा को बूँद बूँद ढलते हुए
कितना अँधेरा है माँ
उजाले की किरण डर रही है पाँव रखते हुए
कोई छलाँग , कोई नींद , पुल सी कोई भरपाई न
माँ ! मैं जीना चाहती हूँ
तेरी गोद में सर रख के , जी भर के रोना चाहती हूँ