शनिवार, 25 अक्टूबर 2014

भाई-दूज

पावन सा ये जो रिश्ता है 
भाई-बहन के प्यार का 
प्रतीक है भाई-दूज तो 
उसी के उपहार का 

द्वितिया तिथि कार्तिक मास की 
उजला सा दिन है इस त्यौहार का 
डोर है मजबूत सी 
आ गया दिन इज़हार का 

बहना के मन में खिल उठा 
भाई का मुखड़ा, शीतल बयार सा 
आ गया जड़ों से लिपटा 
वही मौसम बहार का 

मंगलवार, 7 अक्टूबर 2014

सरहदें ओढ़े हुये

अपनी अपनी सरहदें ओढ़े हुये , मिलते हैं हम जब किसी से 
नहीं मिलता है कोई अपने जैसा 
पहुँचेंगे कहाँ ? जब चलते ही नहीं , हम कभी दिल से 

पन्छी ,नदिया और तारे देखो 
सूरज ने कब बाँधे किनारे देखो 
हम ही मूढ़ भये 
सँग चल पाये न किसी के , कदम हमारे देखो 

उम्मीदों के दिल छोटे होने लगे 
साँझ में गड-मड होती हुई रात 
इक लम्बी रात के दामन में , कोहरे से भरी हुई सुबह 
बादलों के पार कहीं , है सूरज का ठिकाना 
जानते तो सब हैं , मगर रूठे हुये दिल ने है कब ये माना 

सरहदें पिघलें तो दीदार हो इक नई सुबह का 
हसरतें आ कर सीने में फिर मचलें 
दिल-ओ-दिमाग के फैसले में ,
फासले न अब झलकें