मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

कभी जो नाम

कभी जो नाम तुमने हमें दिया था 
अब न वो याद है , न चाहत ही बाकी 
वक्त मिटा देता है क़दमों के निशाँ 
यूँ ही नहीं कहते मरहम इसको 
ये तो आदमी की फितरत है 
कुरेद-कुरेद के ज़िन्दा रखता है ज़ख्म अपने 
उस ओर से अब कोई ,
आवाज़ न लगाये मुझको 
मैं बहुत दूर चली आई हूँ 
यूँ तो अब असर होता नहीं 
रंजो-गम तन्हाई का 
वो लड़क-पन बहुत पीछे छोड़ आई हूँ 
न वो दिल है , न नज़ारे हैं 
बेमायने हुए सारे 
फिर भी न छेड़ना तुम कोई तार 
मुझे आज़माने के लिये 
कभी जो नाम तुमने हमें दिया था 



गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

पूरब की ओर से

सूरज चढ़ता है पूरब की ओर से 
कभी चढ़ तू मेरी गली के छोर से 
मिट जाएँ भरम मेरे सारे 
बाँध लूँ मैं तुझे किसी डोर से 

गेहूँ की बालियाँ हैं सुनहरी 
खेत नाचते हैं जैसे किसी मोर से 
टूटा मेरा ही नाता है देखो 
दूर बैठी हूँ मैं किसी भोर से 

मन के घोड़े दौड़ा लें चाहे जितना 
बाँधे वहीँ खड़ा है कोई जोर से 
हाँफ गई है मेरी सारी कामना 
सारे शिकवे उसी चित-चोर से 

पवन ,बरखा ,बदरी ,मौसम 
गया कोई नहीं है छोड़ के 
अपने भाग टटोलूँ बैठे-ठाले 
बिजली चमके तो सूरज की ओर से