एक बड़ी ही प्यारी मित्र ने कुछ ऐसा किया जो हमारे रिश्तों में कडुवाहट घोलने के लिए काफी था | ऐसे वक़्त में कुछ इन पंक्तियों से ख़ुद को समझाया.....
आँसू आ के रुक गया
आँख की कोरों पर
कैसे नाराज हो जाऊँ
मैं तुझ से गैरों की तरह
दुःख तो होता है
तेरी बेरुखी पर
कैसे खो दूँ मैं तुझे
भीड़ में लोगों की तरह
फूल भी अपनों के मारे हुए
लगते हैं शूलों की तरह
कैसे खो दूँ मैं तुझे
राह में भूलों की तरह
तेरी यादें मुझे यूँ भी
उम्र भर सतायेंगी
कैसे खो दूँ मैं तुझे
गुजरी हुई बातों की तरह