शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009
शनिवार, 10 अक्टूबर 2009
अपना अपना जोग भया
दारु दारु उन्माद हुआ
दुख न हुआ प्रमाद हुआ
गीतों में ढल कर शाद हुआ
किर्चों से मिल कर नाद हुआ
खुशबू में बँट आबाद हुआ
दुख दारु सुख रोग भया
अपना अपना जोग भया
शनिवार, 3 अक्टूबर 2009
टिम-टिम करती मेरी आशा का
जुगनू की तरह मेरी आशा
बुन लेती है सन्सार पिया
मेरी आँखों में पाओगे
तुम अपना ही तो सार पिया
दिल में मैं छुपा के रख लेती
ये जग काँटों का हार पिया
अट जाये फूलों से रास्ता
ऐसा हो तेरा घर-द्वार पिया
छल किया है किस्मत ने मुझसे
कैसे कह दूँ इसे दुलार पिया
हर बार ये कहती जरा धूप है
ऐसा हुआ न पहली बार पिया
दुख पकड़ा नहीं , सुख ढूँढा किए
अपने हाथों में है सितार पिया
टिम-टिम करती मेरी आशा का
ये ही तो है विस्तार पिया
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