शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009

दीपमलिके



दीपमलिके , हम तेरे इन्तजार में
घर सजा के बैठे रहे
मन भी है सजता यूँ ही
इस बात से अछूते रहे
होती है दीवाली किसी की
उपहारों से भरी
हो जाते हैं उनमे ही गुम
और किसी की यूँ दिवाली
तेल है रुई बाती
हो जाए बत्ती ही गुल
स्वागत हैं करते जलते दियों का
है नहीं मोल जलते प्राणों का कोई
घर में हैं करते ढेरों प्रकाश
प्रार्थना करते हैं , बसें
स्थाई हमारे घर में श्री लक्ष्मी गणेश
मन नहीं करते हैं स्वच्छ
करें अंतरात्मा में प्रकाश
टिम टिम कर जलते दिये
छू लें जो मन का कोना
हजारों दियों सी हो रोशनी
कई पूनम सी हो जाए
अमावस की काली रात
मन भी है सजता यूँ ही
इस बात से अछूते रहे

शनिवार, 10 अक्टूबर 2009

अपना अपना जोग भया

दुख दारु सुख रोग भया
दारु दारु उन्माद हुआ

दुख न हुआ प्रमाद हुआ
गीतों में ढल कर शाद हुआ


किर्चों से मिल कर नाद हुआ
खुशबू में बँट आबाद हुआ


दुख दारु सुख रोग भया
अपना अपना जोग भया

शनिवार, 3 अक्टूबर 2009

टिम-टिम करती मेरी आशा का


जुगनू की तरह मेरी आशा
बुन लेती है सन्सार पिया


मेरी आँखों में पाओगे
तुम अपना ही तो सार पिया


दिल में मैं छुपा के रख लेती
ये जग काँटों का हार पिया


अट जाये फूलों से रास्ता
ऐसा हो तेरा घर-द्वार पिया


छल किया है किस्मत ने मुझसे
कैसे कह दूँ इसे दुलार पिया


हर बार ये कहती जरा धूप है
ऐसा हुआ न पहली बार पिया


दुख पकड़ा नहीं , सुख ढूँढा किए
अपने हाथों में है सितार पिया


टिम-टिम करती मेरी आशा का
ये ही तो है विस्तार पिया