शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009

दीपमलिके



दीपमलिके , हम तेरे इन्तजार में
घर सजा के बैठे रहे
मन भी है सजता यूँ ही
इस बात से अछूते रहे
होती है दीवाली किसी की
उपहारों से भरी
हो जाते हैं उनमे ही गुम
और किसी की यूँ दिवाली
तेल है रुई बाती
हो जाए बत्ती ही गुल
स्वागत हैं करते जलते दियों का
है नहीं मोल जलते प्राणों का कोई
घर में हैं करते ढेरों प्रकाश
प्रार्थना करते हैं , बसें
स्थाई हमारे घर में श्री लक्ष्मी गणेश
मन नहीं करते हैं स्वच्छ
करें अंतरात्मा में प्रकाश
टिम टिम कर जलते दिये
छू लें जो मन का कोना
हजारों दियों सी हो रोशनी
कई पूनम सी हो जाए
अमावस की काली रात
मन भी है सजता यूँ ही
इस बात से अछूते रहे

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  2. बढिया रचना।
    दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  3. बेहतरीन रचना!

    सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    -समीर लाल ’समीर’

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