शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

राहें मन की

बहुत कठिन है डगर जीवन की
बहुत हैं आसाँ राहें मन की
खुद को मिटा कर जी जाता जो
पा लेता वो चाहें मन की

विरही मन से पूछ के देखो
आस-निरास सी बाहें मन की
गलबहियाँ ये खुद को डाले
लाख कहे नहीं राहें मन की

पी डाले ये सब्र का प्याला
प्यास बुझे तब तपते मन की
अपनी बस्ती आप बसाये
कर लेता जब अपने मन की

मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

चन्दा ओ चन्दा , चन्दा ओ चन्दा (करवा चौथ पर )

किसी के जीवन का तू उजिआरा
सोलह कला सम्पूर्ण है तू
नित नया परिपूर्ण है तू
शाम ढले बज उठता मन का सँगीत
चन्दा ओ चन्दा , चन्दा ओ चन्दा

इतराता बल खाता , निशा का साथी बन जाता
चन्दा तो है मन का प्रतीक
कह लेते हम कितनी बातें
जैसे तुझसे है जन्मों की प्रीत
चन्दा ओ चन्दा , चन्दा ओ चन्दा

उगता गगन में नित नए आयाम लिये
प्रियतम का सा रूप लिये
करवा-चौथ को सारी सुहागिनें
माँगें और ढूँढें तेरी छवि में
अपने जीवन का मनमीत
चन्दा ओ चन्दा , चन्दा ओ चन्दा

सारे उलाहने तुझसे हैं
खनकती चूड़ी बजती पायल
सारी दुआएँ तेरे सिर
तारों की चूनर गाये गीत
चन्दा ओ चन्दा , चन्दा ओ चन्दा

बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

अभी तो अहसास है तेरा

उन्नीस अक्टूबर , छोटी बेटी का जन्मदिन , दो दिन उसके साथ ही बिता कर लौटी हूँ । तीनों बच्चे जब छोटे थे , उनके दादा जी बड़ी पोती को शेर , छोटी पोती को चिड़िया और छोटे पोते को तोता कहा करते थे । बड़ी बेटी ने भी छोटी बहन को चिया कहना शुरू कर दिया था । यही चिया पिछले साल कॉलेज के बाद की छुट्टियाँ घर बिता कर , जिस रात नारसी मुंजी मुम्बई के एम.बी.ए.के एंट्रेंस टेस्ट के इन्टरवियु के लिये गई , उसी रात की अगली सुबह के अहसास ने इस नज्म को लिख दिया ।

अभी तो अहसास है तेरा
चादर की उन सलवटों में
बिस्तर अभी नहीं बदला मैंने
अभी तो अहसास है तेरा
फ्रिज में रखे उस बचे दूध के गिलास में
उसको अभी-अभी है देखा मैंने 

चिड़िया मेरी ने उड़ान भरी
दूर , बहुत दूर आकाश में
मैं खुश हूँ बहुत , बहुत
मैं देख लूँगी दुनिया
तेरी आँख से , तेरे साथ साथ में

लम्बी उड़ान भरते ही
दूर हो जाते हैं , घरौंदे से
मस्ती के उस साथ से
क्या करें , मजबूरी है
तेरे उड़ने को आसमान भी जरुरी है
तेरा अहसास , तेरी खुशबू
फ़िज़ाओं में आस पास है

तेरे अहसास के अहसास को
सँजो के रखना चाहा
सुबह उठते ही ये सोचा
न कोई खलल हो
तेरी नीँद में , किसी शोर से
जग कर भी मैं हूँ किस नीँद में
बिस्तर है तेरा खाली
और अहसास ने तुझे पास बुला रक्खा है

शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010

पानी पर तेरा चेहरा

पानी पर तेरा चेहरा
ख़्वाबों ने बनाया
कई कई बार ...
रँग हकीकत ही न भरने आई


चलती फिरती मूरत में
ईमान का रँग
थोड़ा ज्यादा होगा ...
वो शहजादा होगा
हसरत कहने आई

पकड़ के आयेगा जब वो
मेरे ख़्वाबों की उँगली
नाक-नक़्शे तस्वीर में
जी उट्ठेंगे ...
महक उट्ठेगा घर अँगना
खुशबू सी आई

रास्ता देख रही है कलम
दम साधे हुए हैं अल्फाज़
वो रुत आई कि आई ...


ये नज्म मेरी बेटी के भावी जीवनसाथी के लिये , जिसका मेरी लेखनी को बड़ी बेसब्री से इन्तज़ार है ...

शनिवार, 2 अक्टूबर 2010

वक्त का पहिया

वक्त का पहिया घूमता जाये
जीवन हाथ से छूटता जाये

बचपन बीता , यादें सुनहरी
छाप दिलों पर छोड़ता जाये

कैसे पकड़ें , यौवन अपना
धोखे का रँग छूटता जाये

साँझ का झुटपुटा , खोल पुलिन्दा
दुखड़ा अपना खोलता जाये

जीवन अपना , अनमोल मोती
कर्मों की गाथा बोलता जाये