क्या कहें ,
वो अपने बड़े प्यारे थे , जो आज दीवार पर हैं फोटो फ़्रेमस में जड़े हुए
हम जी रहे हैं उन्हीं गलियों के उजाले लिए हुए
वो दे गए हमें मन भर, हम अर्पण कर रहे कण भर
गाय , कौआ ,कुत्ता , चींटी , जीम लें स्वीकारते हुए
उनकी फुलवारी के फूल हैं , जहाँ तक नज़र जाती है
उनकी दुआओं ने बुने थे आसमान, हम उसी छत के नीचे हैं खड़े हुए
श्राद्ध के दिन आते हैं वो भाव से पृथ्वी पर
श्रद्धा के सुमन अर्पित हैं , ग्रहण कर लें वो आशीष देते हुए