सूने हो गये घर-अँगना , जो आबाद हुये थे बच्चों के आने से ,
मन की ये फितरत है , सजा लेता है दुनिया जिन क़दमों की आहट से भी ,
बुन लेता है रँगी सपने उन लम्हों के अफसानों से भी.......
अब के बरस
कुछ अपने हैं हम से बिछड़े ,
कुछ सपने परवान चढ़े
जीवन की ये रीत पुरानी
जैसे कोई बहता पानी
इश्क किनारे से कर ले तो,
कैसे कोई उड़ान भरे
क्या खोया क्या पाया हमने
एक महीन कागज हिसाब का
छोड़ो छोड़ो ,क्या पायेंगे ,
काँटों से दामन कौन भरे
ढूँढ रहा है बहाने इन्सां
अपना ही दम भूल गया
अपने क़दमों चलना ही ,
पँखों की पहचान लगे
मन की ये फितरत है , सजा लेता है दुनिया जिन क़दमों की आहट से भी ,
बुन लेता है रँगी सपने उन लम्हों के अफसानों से भी.......
अब के बरस
कुछ अपने हैं हम से बिछड़े ,
कुछ सपने परवान चढ़े
जीवन की ये रीत पुरानी
जैसे कोई बहता पानी
इश्क किनारे से कर ले तो,
कैसे कोई उड़ान भरे
क्या खोया क्या पाया हमने
एक महीन कागज हिसाब का
छोड़ो छोड़ो ,क्या पायेंगे ,
काँटों से दामन कौन भरे
ढूँढ रहा है बहाने इन्सां
अपना ही दम भूल गया
अपने क़दमों चलना ही ,
पँखों की पहचान लगे