अरमाँ की तरह जो संग चले
बाहों में वो कुछ यूँ भर ले
जैसे कोई अपना होता है
जैसे कोई सपना होता है
कानों में वो कुछ यूँ कहता
धरती अपनी ,दुनिया अपनी
मेरे संग खिले , मेरे संग जगे
जीवन की कोई परिभाषा
कोई मापदण्ड होता है भला
पकड़ो तो कोई ऐसी बात
गुड़-चीनी की तो बात ही क्या
मीठी सी खीर हो जैसे कोई
भीनी सी ख़ुशबू संग लिए
दिन-रात पगे ,हर पल महके