मेरे मन , कैसे तू बतायेगा
समझेगा , समझायेगा
पाने को है क्या बाकी
क्यों झोली फैलायेगा
अपने जो बड़े अपने
करते तीरों सा घायल हैं
मरहम भी नहीं रखते
रिसते हुए जख्मों पर
तेरा ही नहीं ये तो
हर इक का फ़साना है
दिए को तो जलना है
जलने का ये कायल है
हवा हो या आँधी हो
बाती में नमी रखना
हँसना है तेरे मन को
या जग को हँसाना है
तेरे ही तो टुकड़े हैं
तेरी राहों के मन्जर हैं
इनके बिन क्या है तू
तेरा ही खजाना हैं
बन जायेंगी ये यादें
जीवन को सजाना है
मेरे मन , कैसे तू बतायेगा
समझेगा , समझायेगा
पाने को है क्या बाकी
क्यों झोली फैलायेगा
नई पीढ़ी के बच्चों ने नहीं देखा
धूप के रँगों को साँझ में घुलते हुए
हो गये हैं प्रकृति से दूर
खुद में उलझे हुए
कैसी होती है सुबह
नहीं देखा पूरब में सूरज को उगते हुए
नहीं देखा हवाओं को ,
चिड़ियों से चहकते हुए
तुम्हारे घर में है भैंस , पेड़ ,
बिल्ली और बच्चे खेलते हुए
नहीं देखा शहरी पीढ़ी ने
जिन्दगी की खनक को गीत में ढलते हुए
नहीं देखा मिट्टी की सनक को ,
रूह में मचलते हुए
नई पीढ़ी के बच्चों ने नहीं देखा
सीने में उठते बवंडर की
हर लहर कहाँ साहिल पाती
वरना शोर के सिवा न कुछ शेष रहे
बीच भँवर में दम तोड़ती
घुलती कच्चे घड़े की तरह
नामो-निशाँ भी न शेष रहे
मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा की
खुदाई में मिले
आदमी की सभ्यता के अवशेष रहे
जब जमीं न हो क़दमों तले
उल्टे लटके हों , नजर के सामने मगर
आसमाँ शेष रहे
सामाँ तो बंधा सबका है
युग के सीने पर आदमी के हस्ताक्षर
सनद शेष रहे
बीते हुए साल की छाप लिये
कुछ ऐसा कर गुजर जाएँ
मानवता का सिर ऊँचा हो
पीढ़ियों तक सनद शेष रहे
नए साल का स्वागत है
नए साल का स्वागत है