जो कर दे मुझे खुद से ही दूर
पानी से पतला जीवन है
फिसला जाता है अपना ही नूर
अग्नि से तेज क्रोध है
जल जाता है तन मन वजूद
हवा से तेज मन है चलता
नहीं संभलता है गति का अवरोध
आकाश से खाली हैं गर विचार
भारी नहीं है मन उदार
धरती सा धैर्य है अगर
फलें फूलें फसल भरपूर
खुद से मिल कर आ गए
छलावों में थे हम खुद से कितने दूर !