क्या कहें अब मूक ज़ुबानें
सुलगती चिंगारियाँ और फुंके घर-बार दुकानें
कुर्बान हो गईं कितनी ज़िन्दगियाँ
नफरत की जलती मिसालें
अब नहीं बनना है कहानियाँ हमको
नहीं झेलने हैं और बँटवारे के दर्द
सदियों को झेलना पड़ता है
ढोतीं हैं पीढ़ियाँ बोझा
खोल के देख ले तू ज़हन की किताबें
पहले आप , पहले आप वाले देश में
मैं ही मैं , मैं ही मैं कैसे हुई
अपनों में कौन बेगाना है
कोई तो पूछ बताये हमें
सवालों के घेरे में इन्सानियत
सोये ज़मीर को जगाओ तो जानें
सुलगती चिंगारियाँ और फुंके घर-बार दुकानें
कुर्बान हो गईं कितनी ज़िन्दगियाँ
नफरत की जलती मिसालें
अब नहीं बनना है कहानियाँ हमको
नहीं झेलने हैं और बँटवारे के दर्द
सदियों को झेलना पड़ता है
ढोतीं हैं पीढ़ियाँ बोझा
खोल के देख ले तू ज़हन की किताबें
पहले आप , पहले आप वाले देश में
मैं ही मैं , मैं ही मैं कैसे हुई
अपनों में कौन बेगाना है
कोई तो पूछ बताये हमें
सवालों के घेरे में इन्सानियत
सोये ज़मीर को जगाओ तो जानें