विरह पतझड़ सा पीला क्यों
यादों का तना गठीला क्यों
नश्तर सा समय नुकीला क्यों
कोई पूछ के आए तो उससे
वो इतनी दूर रँगीला क्यों
सपनों का पुलिन्दा चटकीला क्यों
भरमों का रँग भड़कीला क्यों
दिल में जो छुप कर बैठा है
पूछो पूछो , वो सजीला क्यों
आशा की उँगली पकड़ता है
रातों का ठिकाना ढीला क्यों