पहले आप , पहले आप वाले देश में ; मैं ही मैं , मैं ही मैं होने लगी
वो भी चलें , हम भी चलें , क्या सब साथ चल सकते नहीं
ऊपर वाला हर उस दिल में रहता है , जहाँ फर्क किया जाता नहीं
वो मौजूद है कण-कण में , फिर भी हम उसे देख पाते नहीं
हम उसे महसूस करते हैं , प्रार्थनाओं में , इबादत में
मन्दिर हो कि मस्जिद हो ,दुआओं को उठे हाथों में
हिन्दू करता है साक्षात्कार परमात्मा का
मुस्लिम करता है दीदार अल्लाह का
एक ही नूर है , तरीके उस तक पहुँचने के जुदा-जुदा हैं
इन्सानियत का धर्म है सब से बड़ा , खुद चलो औरों को भी चलने की जगह दे दो
इतिहास नहीं बख्शेगा , लाशों के दिलों पर जो लिखने चले हो तुम
पाकीज़गी हमारी खुराक है , कुछ खाना मन को भी दे दो , इन्सान बने रहने दो
लम्हों ने खता की , सदियों ने सजा पाई ; जुनूनों ने की गलती , निर्दोषों ने सजा पाई
इतना सामान सर पर इकट्ठा मत करो , कि टूटे रीढ़ की हड्डी , पीढ़ियों को बोझा ढोना पड़े
चलने की जगह न हो , उड़ने को कहाँ जाएँ