कैसा है सिला
जिन्दगी तेरे सिवा
कोई लुभा न पाया हमें
सहराँ की तपती रेत पर
साये की हसरत लिये
टुकड़ों में धूप बटोरी हमने
दरख्त के साये में
छन-छन के आती
धूप निहारी हमने
चाँद पहलू में लिये
चाँदनी की आरजू में
यूँ रात गुजारी हमने
कैसा है सिला
किश्तों में मिली
जिन्दगी , तेरी चाँदनी बटोरी हमने