जितना जुड़े जमीन से ,उतना सुन्दर रूप
खिले हुए ज्यों फूल से , शोभा बनी अनूप
हर घर को वो धूप दे , फर्क न करता कोय
सूरज जैसा पथिक भी , कोई कोई होय
पत्थर मारो जितने भी , फल ही वो टपकाय
वृक्षन से हम सीख लें , देत देत न अघाय
दान न ऐसा दीजिये , पंगु देय बनाय
कुल्हाड़ी ही थमाइये , रोजी तो वो कमाय
अतिथि आया द्वार पर , दीजिये पूरा मान
मौका आया सेवा का , जन्म सुफल तू मान
डूबन लागे बिच्छू जब , साधू ही बचाय
डंक वो मारे कितने ही , धर्म न छोड़ा जाय
अपना अपना दायरा , ख़ुशी ख़ुशी निभाहिये
प्रांगण में हो पेड़ या , रिश्तों को ही सराहिये
खिले हुए ज्यों फूल से , शोभा बनी अनूप
हर घर को वो धूप दे , फर्क न करता कोय
सूरज जैसा पथिक भी , कोई कोई होय
पत्थर मारो जितने भी , फल ही वो टपकाय
वृक्षन से हम सीख लें , देत देत न अघाय
दान न ऐसा दीजिये , पंगु देय बनाय
कुल्हाड़ी ही थमाइये , रोजी तो वो कमाय
अतिथि आया द्वार पर , दीजिये पूरा मान
मौका आया सेवा का , जन्म सुफल तू मान
डूबन लागे बिच्छू जब , साधू ही बचाय
डंक वो मारे कितने ही , धर्म न छोड़ा जाय
अपना अपना दायरा , ख़ुशी ख़ुशी निभाहिये
प्रांगण में हो पेड़ या , रिश्तों को ही सराहिये