बुधवार, 15 जनवरी 2014

रिश्तों को ही सराहिये

जितना जुड़े जमीन से ,उतना सुन्दर रूप 
खिले हुए ज्यों फूल से , शोभा बनी अनूप 

हर घर को वो धूप दे , फर्क न करता कोय 
सूरज जैसा पथिक भी , कोई कोई होय 

पत्थर मारो जितने भी , फल ही वो टपकाय 
वृक्षन से हम सीख लें , देत देत न अघाय 

दान न ऐसा दीजिये , पंगु देय बनाय 
कुल्हाड़ी ही थमाइये , रोजी तो वो कमाय 

अतिथि आया द्वार पर , दीजिये पूरा मान 
मौका आया सेवा का , जन्म सुफल तू मान 

डूबन लागे बिच्छू जब , साधू ही बचाय 
डंक वो मारे कितने ही , धर्म न छोड़ा जाय 

अपना अपना दायरा , ख़ुशी ख़ुशी निभाहिये 
प्रांगण में हो पेड़ या , रिश्तों को ही सराहिये 


बुधवार, 1 जनवरी 2014

नया साल है

नया साल है ,नई सुबह है 
आओ हम कुछ मिल-जुल बाँटें 
सूरज की आहट पर हम भी 
उजली-उजली किरणें छाँटें 

छूट गया जो , छोड़ो यारों 
आज को अपना सब कुछ मानें 
खुश होकर हम ,खुशहाली बाँटें 

आज जो हमने बोया है 
कल दुगना होकर लौटेगा 
विष्वास की ऐसी फसलें काटें 

नम सीने में ज़रा उजाला 
घर भर को चमका देता है 
धूप की मुट्ठी भर-भर बाँटें 

हर दिन हो दशहरे जैसा 
हर रोज उमँग दीवाली सी 
जीवन की ऐसी तरंगें बाँटें