यादों की गुल्लक फोड़ूँ तो ,
बचपन ज़िन्दा हो उठता है
माँ का आँचल लहराता है ,
इक छाँव मेरे सँग चलती है
साया जो पिता का सर पर था ,
जैसे अम्बर ताने हाथ खड़ा
मुश्किल से मुश्किल राहों पर ,
वो बेफिक्री ,महफ़ूज़ियत आज भी मेरे सँग चले
भाई-बहनों में छोटी थी ,
खेल-खिलौने ,झूले सब मेरे थे
सावन का झूला वो अँगना में ,
लाड-दुलार सँग कोई लौटाए तो
गुड्डे-गुड़ियों की दुनिया में ,
कुछ सँगी थे ,कुछ साथी थे
अपनी-अपनी दुनिया में खो गये सब ,
वो नन्ही दुनिया आज भी मुझको दिखती है
कुछ दोस्त गले से लगाये थे ,
जैसे जां में अपनी समाये थे
कोई दिल के बदले दिल दे दे ,
मैं आज भी ढूँढती फिरती हूँ