हमने अच्छे -अच्छों को ,खरबूजे की तरह
रंग बदलते देखा
बड़े -बड़ों को गुमनामी में ,
तड़पते देखा
शोहरत मिलती है नसीबों से
नसीबों को बदलते देखा
चढ़ते हुए जंगी से
हौसलों को मचलते देखा
गुरूर की नासमझी में
भाई-भाई को झगड़ते देखा
कामना की अंधी दौड़ में
रिश्तों को उधड़ते देखा
लताड़े जाते हैं दिलों को
रंग कुर्सी का यूँ चढ़ते देखा
उजाले में ,दामन पर पड़े
छींटों से बचते देखा
जाल अपने ही बुने में
बड़े -बड़ों को फंसते देखा
हस्ती है बड़ी ,रंग
क़द का ही बिखरते देखा
इंसानियत छोटी क्यों हुई
टूटे दिलों को बिलखते देखा
रंग बदलते देखा
बड़े -बड़ों को गुमनामी में ,
तड़पते देखा
शोहरत मिलती है नसीबों से
नसीबों को बदलते देखा
चढ़ते हुए जंगी से
हौसलों को मचलते देखा
गुरूर की नासमझी में
भाई-भाई को झगड़ते देखा
कामना की अंधी दौड़ में
रिश्तों को उधड़ते देखा
लताड़े जाते हैं दिलों को
रंग कुर्सी का यूँ चढ़ते देखा
उजाले में ,दामन पर पड़े
छींटों से बचते देखा
जाल अपने ही बुने में
बड़े -बड़ों को फंसते देखा
हस्ती है बड़ी ,रंग
क़द का ही बिखरते देखा
इंसानियत छोटी क्यों हुई
टूटे दिलों को बिलखते देखा