बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

मानिनी की जान गई

और जब आया सूरज 
मानिनी रूठ गई 
तुम सूरज हो 
हमने तुम्हें माना है 

रोज आता है धरा पर 
जायेगा भी कहाँ 
मानिनी जान गई 

रुई की तरह धुन-धुन कर 
कलेजा छलनी हुआ 
वो चले अपने रस्ते पर 
मानिनी की जान गई 

मनुहार करनी नहीं आती सूरज को 
थक के सो जाता है 
हर सुबह खड़ा है वहीँ 
मानिनी भूल गई 

उम्मीद वही , ज़िन्दगी भी वही 
सारी दुनिया एक तरफ 
अपने मन के मौसम तो 
सूरज के साथ खड़े 
क्यूँ मानिनी रूठ गई ...


रविवार, 17 फ़रवरी 2013

बर्फ के कतरे से

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बर्फ के कतरे से यूँ पड़ने लगे हैं 
डाल से हरसिंगार की ,फूल ज्यों झरने लगे हैं 

बरसते हैं उपहार ऐसे भी
मौन कितना है मुखर , मन भीगने लगे हैं 

बादल ने बरसाया प्यार कतरा-कतरा 
धरती अम्बर कुछ यूँ मिलने लगे हैं 

कर लिया है श्रृंगार प्रकृति ने 
ऋतुओं के घर मेले लगे है

पेड़-पर्वत , घरों की ढलवाँ छतें 
ओढ़ चादर चाँदनी की ,दमकने लगे हैं 

किसी और ही दुनिया में आ गये हैं 
उजाले से चारों तरफ पड़ने लगे हैं  

खबर लग गई है सैलानिओं को 
कुदरत के हसीन नज़ारे भाने लगे हैं 


शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

दाना-दाना निगलाया आशा का

तिनका-तिनका चुन कर नीड़ बनाया आशा का 
कर पायेंगे , उड़ पायेंगे , दिन अच्छे भी आयेंगे 
दाना-दाना निगलाया आशा का 

कोई टहनी , कोई शाखा , कोई जमीं , कोई आसमाँ 
नन्हें पँखों को सहलाया , दिन अच्छे भी आयेंगे  
दाना-दाना निगलाया आशा का 

भरते हैं घूँट भी हम अक्सर किरणों के प्याले से 
आएगा सबेरा ,निकलेगा सूरज , विष्वास दिलाया 
दिन अच्छे भी आयेंगे 
दाना-दाना निगलाया आशा का 

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

मैं यहीं कहीं हूँ

इन्सानियत का चेहरा बस भगवान जैसा ही है 
भगवान को देखा तो नहीं है 
महसूस किया है बस  
नम सीने में जैसे रौशनी सी उतर आती है 
इन्सान ज़िन्दगी भर ज़िन्दगी को खोजा करता 
ज़िन्दगी कहती है , मैं यहीं कहीं हूँ ,तेरे आस-पास 
तुम शिकन ही शिकन देखा करते 
मैं निश्छल हूँ , किसी बच्चे के चेहरे की तरह 
मासूमियत , इन्सानियत और भगवान में कोई ज्यादा फर्क नहीं है 
शर्त बस एक ही है कि कोई शर्त न हो 
सीने में हो लबालब भरा प्यार , विष्वास हो , बेफिक्री हो 
जो है यही है , बस आज ही है