मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

बड़ी दीदी की इक्कतीसवीं पुण्यतिथि पर श्रद्धान्जलि स्वरूप



वो स्नेहमई ,त्याग से भरीं , ममता की मूरत सी थीं 
दुनिया से जुदा ,निष्छल सी कोई सूरत सी थीं 
घर की बड़ी बेटी किसी स्तम्भ सी थीं 
किस को मालूम था यूँ चली जायेंगी असमय 
मुझको तो भूली नहीं उनके पसीने की गन्ध भी ,
न ही भूला है उनकी उंगलियों का स्वाद 
उनकी मौजूदगी का अहसास था हवाओं में 
अपनेपन से भरी ,निस्वार्थ भाव की मशाल लिए ,
जमीं पर उतरी परी सी थीं 

खिली रहे ये बगिया उनके फूलों की 
उनकी परवरिश के फूल यूँ ही महकते रहें 
चली गईं हैं वो बेशक तारों की दुनिया में 
वो ज़िन्दा  हैं हमारे सीने में 
उनकी दुआएँ हैं जो आज लहलहाई हैं 
सीँच कर चली गईं वो सावन की झड़ी सी थीं 

सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

स्मृतियाँ शेष हैं


वही सड़कें हैं ,वही शहर है 
मगर बस आप नहीं हैं 
चीजों की मियाद होती है 
बस आदमी की नहीं है 

कोई ऐसे भी जाता है क्यूँ दुनिया से 
न जी भर के की बातें ,न कस कर के कोई झप्पी 
न अलविदा ही कहा 
मेरी यादों की दुनिया सूनी हो गई 
जो इक युग था मेरे सीने में ,वो कहानी हो गया 

मेरे दुख से आप दुखी ,आपके दुख से मैं उदास 
जिन्हें देखते ही उमड़ उठती हों मीठी सी सदाएँ ,
और छँट जाते हों गम के बादल 
कहाँ मिलते हैं ऐसे चारासाज 

आपको खो कर अपने शहर लौटी हूँ मगर मेरी ठण्डी हवाएँ नहीं हैं 
वही शहर है 
आपको खो कर बहुत कुछ खो दिया है मैनें 
मगर वो अहसास तो रहेंगे ताउम्र मेरे साथ