दुनिया से जुदा ,निष्छल सी कोई सूरत सी थीं
घर की बड़ी बेटी किसी स्तम्भ सी थीं
किस को मालूम था यूँ चली जायेंगी असमय
मुझको तो भूली नहीं उनके पसीने की गन्ध भी ,
न ही भूला है उनकी उंगलियों का स्वाद
उनकी मौजूदगी का अहसास था हवाओं में
अपनेपन से भरी ,निस्वार्थ भाव की मशाल लिए ,
जमीं पर उतरी परी सी थीं
खिली रहे ये बगिया उनके फूलों की
उनकी परवरिश के फूल यूँ ही महकते रहें
चली गईं हैं वो बेशक तारों की दुनिया में
वो ज़िन्दा हैं हमारे सीने में
उनकी दुआएँ हैं जो आज लहलहाई हैं
सीँच कर चली गईं वो सावन की झड़ी सी थीं