रूठा है कुछ मुझसे,
मेरा ही अपना आप कहीं
मेरा अपना ही हिस्सा है
चलता जो मेरे साथ नहीं
क्यों दूरी है ?
हम कोई दिन रात नहीं
मैं चलती हूँ जब पूरब को
चल देता है पश्चिम की ओर कहीं
कैसे बोलूँ मेरा तो
तुम बिन कोई ख्वाब नहीं
और पश्चिम में तो ,
खिलती कोई आस नहीं
जीवन तो जीवन होता है
आँसू की बरसात नहीं
फूलों को खिलना होता है
क्यों बहारों का गुंजन साथ नहीं
पेंगें लेते हम सावन की
फिर क्यों हाथों में हाथ नहीं