नौ नवम्बर ०९ , आज बेटे का
बीसवाँ जन्मदिन है , छोटा सा था जब माउन्ट आबू में बेटियों की राजस्थानी ड्रेस में फोटो खिचवाई थी , तो
इन्हें भी कहा
कि राजस्थान की पारम्परिक ड्रेस में एक फोटो खिंचवा लो ; सिर हिला कर कहने लगे कि
नहीं ये नहीं पहनूंगा , फ़िर ख़ुद ही कहने लगे कि यहाँ पुलिस वाली ड्रेस भी है उसको
पहनूँगा ,ये फोटोग्राफ उस वक़्त का ही है।
ये कविता अमरउजाला के बच्चों वाले कॉलम के लिए लिखी थी , पर याद तो अपने ही बेटे को कर रही थी। प्रस्तुत है .....
तू फूल है मेरे बाग़ का
सुन्दर सा ज्यों मुखड़ा कोई गुलाब का
पढ़ लिख के बन जाना
तू कोई नवाब सा
बन जाना तू प्रेम और
भाईचारे की मिसाल सा
मुश्किलों से न घबराना
सिपाही है तू जाँबाज सा
रास्ता तेरा महफूज हो
ममता की ठण्डी छाँव सा
तू मुस्कराता है , घर
खिल जाता है किसी बाग़ सा
महकाना तू दुनिया को
स्वर्ग सा , इक ख्वाब सा
बहारों को न्योता दे दिया
गुलशन को है इन्तजार सा
तू फूल है मेरे बाग़ का
सुन्दर सा ज्यों मुखड़ा कोई गुलाब का