ये आँगन में खड़े लीची और आम के पेड़
झुक गईं हैं डालियाँ फलों के बोझ से
बरसों से खड़े हैं राह तकते
बोता है कोई और , खाता है कोई और
जीते हैं हम अपने जतनों से
पाते हैं सदा फल अपने कर्मों का
फलदार हों , छायादार हों
कौन आता है तेरे साये में पलने को
दिल ने माँगा सदा पुराना
ज़ेहन आगे देख न हारे
नन्हें पौधे जवाँ हुए हैं
और जवाँ दिल हुए हैं बूढ़े
झुक-झुक आई हैं डालियाँ
धरती से कुछ कहती हुईं
हजारों मील दूर है कोई
मिट्टी की महक को सीने से लगाये हुए
कोई कैसे है इन नजारों को भुलाये हुए
झुक गईं हैं डालियाँ फलों के बोझ से
बरसों से खड़े हैं राह तकते
बोता है कोई और , खाता है कोई और
जीते हैं हम अपने जतनों से
पाते हैं सदा फल अपने कर्मों का
फलदार हों , छायादार हों
कौन आता है तेरे साये में पलने को
दिल ने माँगा सदा पुराना
ज़ेहन आगे देख न हारे
नन्हें पौधे जवाँ हुए हैं
और जवाँ दिल हुए हैं बूढ़े
झुक-झुक आई हैं डालियाँ
धरती से कुछ कहती हुईं
हजारों मील दूर है कोई
मिट्टी की महक को सीने से लगाये हुए
कोई कैसे है इन नजारों को भुलाये हुए