सोमवार, 22 जुलाई 2024

माँ तुम अक्सर याद आती हो

माँ तुम अक्सर याद आती हो 

होती हूँ जब-जब निराशा के गर्त में 

तुम  कर सहला जाती हो 

कौन आस-पास घूमा करता है 

दुआएँ तुम्हारी मेरा माथा चूमा करती हैं 


माँ तुम सम्बल , माँ तुम धरती ,माँ तुम अम्बर

तुम होती हो आस-पास 

उस तपिश को क्या नाम दूँ 

एक उजास , एक छाँव आराम की ,

एक सुकून का पलनाबेफ़िक्री का आलम 


बस तुम्हारे बाद अब कहीं कोई गोद नहीं 

जहां मैं सर भी रख सकूँ 

फिर भी तुम ही तुम नज़र आती हो , मुझे मेरे बचपन से अब तक की हर सीढ़ी पर 

मेरे सपनों में आज भी जीती-जागती हू--हू नज़र आती हो 

माँ तुम अक्सर याद आती हो 

बुधवार, 17 जुलाई 2024

बच्चों के दम पर

बच्चों के दम पर भी हम देखते हैं दुनिया 

ये कभी भी , कहीं भी ले चलते हैं 

कुछ भी ख़रीदवा देते हैं 

और हम जैसे अपने माँ-बाप की उसी छत्रछाया में पहुँच जाते हैं 

बचपन के वो नायाब से तोहफ़े , जहाँ वापसी के व्यवहार की कोई उम्मीद ही नहीं 

ये अचानक कोई हमें बेफ़िक्री की सी खुमारी में झुला जाता है 

हाथों से फिसलती हुई उम्र जैसे सुस्ता कर फिर से जी उठती है 

दिल में भरी हुई दुआएँ हैं , आँखों में जैसे एक बार फिर से सितारे टिमटिमा उठते हैं 

सीने में रुकी हुई रफ़्तार फिर से रवानी पा लेती है 

और ज़िन्दगी की दूसरी पारी हसीन हो उठती है