माँ तुम अक्सर याद आती हो
होती हूँ जब-जब निराशा के गर्त में
तुम आ कर सहला जाती हो
कौन आस-पास घूमा करता है
दुआएँ तुम्हारी मेरा माथा चूमा करती हैं
माँ तुम सम्बल , माँ तुम धरती ,माँ तुम अम्बर
तुम होती हो आस-पास
उस तपिश को क्या नाम दूँ
एक उजास , एक छाँव आराम की ,
एक सुकून का पलना, बेफ़िक्री का आलम
बस तुम्हारे बाद अब कहीं कोई गोद नहीं
जहां मैं सर भी रख सकूँ
फिर भी तुम ही तुम नज़र आती हो , मुझे मेरे बचपन से अब तक की हर सीढ़ी पर
मेरे सपनों में आज भी जीती-जागती हू-ब-हू नज़र आती हो
माँ तुम अक्सर याद आती हो
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 24 जुलाई अप्रैल 2024को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।