गुरुवार, 9 अक्टूबर 2008

श्री श्री रवि शंकर जी के लिए

तुमने गाई एक धुन
कितनों के मन ने गाया

तुमने बढाया एक कदम
कितनों के संग चल पाए

तुमने पकड़ी एक उंगली
कितनों ने बाहें थमाईं

नूर है उसका उंगली पकड़े
चलने का सरमाया

तुमने खिलाई ये बगिया
फूलों को महकाया

तुम जो खड़े हो बाहें पसारे
कितनों को गले लगाया

आँखें मूंदू , सपना है क्या
सुख सागर लहराया

तुमने गाई एक धुन
कितनों के मन ने गाया

1 टिप्पणी:

  1. शारदा जी, हिन्दी ब्लागजगत में आपका स्वागत है. कविता के भाव उत्तम हैं.

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