सूरज हो तुम , खिड़-खिड़ चढ़ो मोरे अँगना
सोना-सोना चमको मोरे अँगना
चाँदी हो तुम , चाँदी-चाँदी बिखरो मोरे अँगना
मेरा क्या है , पँख तुम्हारे
चढ़ बैठूँ मैं पल में चौबारे
घूँट-घूँट मैं पीती तुझको
रब है रब है , जीती तुझको
आ जाओ बस , दमको मोरे अँगना
धूप सुनहली , चाँदनी रूपहली
सूरज चन्दा ठिठके मोरी देहली
आँचल में भर लूँ गोटा-किनारी
तुम ही तुम हो ठहरे मोरे अँगना
आ जाओ बस , बरसो मोरे अँगना
खूबसूरत रचना .....
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज सोमवार(०४-०७-२०२२ ) को
'समय कागज़ पर लिखा शब्द नहीं है'( चर्चा अंक -४४८०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज सोमवार(०४-०७-२०२२ ) को
'समय कागज़ पर लिखा शब्द नहीं है'( चर्चा अंक -४४८०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बेहतरीन आवाहन !
जवाब देंहटाएंसुंदर आकर्षक सृजन।
जवाब देंहटाएंमनभावन।