गुरुवार, 6 अक्टूबर 2022

' माँ '

' माँ ' पर कविता

ज़िन्दगी भर बचपन बोला करता

यादों की क्यारी में माँ का चेहरा ही डोला करता

भूले वो माँ की गोदी , आराम की वो माया सी

जीवन की धूप में घनी छाया सी

पकड़ के उँगली जो सिखाती हमको , जीवन की डगर पर चलना

हाय अद्भुत है वो खजाना , वो ममता का पलना

गीले बिस्तर पर सो जाती , और शिकायत एक नहीं

चौबीस घंटे वो पहरे पर , अपने लिये पल शेष नहीं

होता है कोई ऐसा रिश्ता भी , भला कोई भूले से

छू ले जैसे ठण्डी हवा , जीवन की तपन में हौले से

मन भूलता है वो महक माँ के आँचल की

वो स्वाद माँ की उँगलियों का

जीवन भर साथ चले जैसे , उजली उजली

दुआ ही दुआ , विष्वास बनी वो फ़रिश्ता सी

3 टिप्‍पणियां:

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