मेरे बच्चों , जब भी मिलना , कुछ ऐसे मिलना
जैसे बिछड़ी हुई डालियाँ तने से मिलें
ये जान लो कि रिश्तों की गर्मी भी हमें चलाती है
ये वो शय है जो बाज़ार में बिकती नहीं , न ख़रीदने से मिले
जड़ों को सींचोगे तो रहोगे हरे-भरे
थक के बैठोगे तो यही छाँव सहलायेगी तुम्हारी शिकनें
कर लो रौशन , कर लो रौशन अपनी दुनिया
ये उजाले न फिर ढूँढने से मिलें
इक बूटा लगाया है , छाँव की दरकार मुझे
तुम इस तरह मिलना के जैसे रूह रूह से मिले
कामना की अँधी दौड़ में , भूल न जाना खुद को ही
जब भी मिलो इस तरह मिलना के जैसे अपने-आप से मिले
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है