बुधवार, 28 सितंबर 2022

उम्र तो यूँ ही गुज़र जाती है

 ज़िन्दगी कुछ यूँ ही गुजर जाती है ,साल भर के तीज-त्यौहार , व्रत-पर्व ,दिन-महीनों को तारीख़ों की तरह गिनते-गिनते 

स्कूल-कालेज, जॉब ,शादी ,बच्चे ,चोट-चपेट के सालों को उँगलियों पर गिनते-गिनते 

किसने दिल दुखाया , किस-किस ने मन को उठाया , किस-किस ने साथ दिया , ये भी याद है क़िस्से-कहानियों की तरह गिनते-गिनते 

गर्मी से सर्दी ,सर्दी से गर्मी , मौसम के बदलते तेवर ,फुर्सत के पलों में तन्हाई में मचा शोर ,किसने देखा-समझा है , उम्र की साँझ को ढलते-ढलते 

उम्र तो यूँ ही गुज़र जाती है ,जुदा-जुदा हैं कहानियाँ , जुदा-जुदा हैं अहसास ,मगर दर्दे-दिल की ज़ुबाँ तो है एक सी ही , कहते-सुनते 



6 टिप्‍पणियां:

  1. व्यस्तता बनी रहे। कुछ गिले रहें कुछ शिकवे रहें। जिन्दगी रुकनी नहीं चाहिये बस इसी मौज में चलती रहे।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(३०-०९ -२०२२ ) को 'साथ तुम मझधार में मत छोड़ देना' (चर्चा-अंक -४५६८) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. शुक्रिया अनिता जी , मैं चाह कर भी अपने गूगल अकाउंट से टिप्पणी नहीं दे पा रही । सेटिंग्स गड़बड़ हैं । Sharda Arora

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  3. वाह शारदा जी !
    एक पुराने नग्मे की एक लाइन याद आ गयी -
    'थोड़े शिक्वे भी हों, कुछ शिकायत भी हो,
    मज़ा जीने का और भी आता है ---'

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  4. किसने देखा-समझा है , उम्र की साँझ को ढलते-ढलते ....
    सही कहा क्योंकि जुदा-जुदा हैं कहानियाँ , जुदा-जुदा हैं अहसास...
    सार्थक एवं सारगर्भित।

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आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है