दुनिया की सारी माँओं के लिये
सुख में तुम मुझे याद आओ या न आओ
दुख में तुम हमेशा मेरे सिरहाने खड़ी होती हो
जब मैं नन्हीं बच्ची थी
मैंने पहचाना पहला स्पर्श तुम्हारा ही
मेरे आने से पहले ही तुमने ,
सजा लिया था मुझसे अपना सँसार
फूलों सा तुमने पाला मुझको
बिन माली गुलशन का रूप है क्या
ज़िन्दगी ने लिये कितने ही इम्तिहाँ
हर ठोकर पर निकला मुहँ से ' हाय माँ '
माँ तुम ठण्डी छाया हो
और ज़माना धूप ही धूप
ये जीवन है माँ की बदौलत
माँ की महिमा ऐसी अनूप
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