तेरे बचपन की गिलासी
माँ ने पिलाया होगा पानी ,
और दी होगी ममता की घुट्टी
है ये तेरे बचपन की साथी ,
मूक गवाही नन्हीं हथेलियों की
वाकिफ़ है ये उन हथेलियों की कंपकंपाहट से भी
छुटते-छुटते भी सँभालने की कोशिश से भी
एक-एक कर छूट गये पलने भी और बचपन भी
ममता ने बिछाये होंगे फूल , और बुने होंगे सपने भी
आँख का तारा कहने वाले खुद आसमान के तारे बन बैठे
ये निशानियाँ भी ले आती हैं सारी यादें
फूल खिला कर बैठे हैं हम , दीप जला कर बैठे हैं
बचपन की सोहबत में हम , आज फिर आकर बैठे हैं
नन्हीं सी गिलासी ने पानी पिलाया आज फिर ,
यादों का घूँट-घूँट भर
bahut sundar poem... bachpan ki dher saari yaadon ko jinda karti hui....
जवाब देंहटाएं