सोमवार, 29 दिसंबर 2008

गुलाल ही पी , गुलाल ही जी

क्यों खाए बैठा है मलाल
क्यों भूले बैठा है गुलाल
गुलाल ही पी, गुलाल ही जी

किस किस का रखेगा हिसाब
खोल तू अपने पँखों की किताब

कितनो को ढक सकते हैं ये
कितना फासला तय कर सकते हैं ये

हिम्मत का डग भरती उड़ान
नस नस में रँग भरती उड़ान

कितनी ऊँचाई तय कर सकती उड़ान
गुलाल ही पी , गुलाल ही जी

5 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है....लाजवाब रचना...जिंदगी जीना सिखाती हुई...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  2. हिम्मत का डग भरती उड़ान

    नस नस में रँग भरती उड़ान

    कितनी ऊँचाई तय कर सकती उड़ान

    गुलाल ही पी , गुलाल ही जी

    ati sundar....nice thoughts....regards

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता.
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छा िलखा है आपने । नए साल में यह सफर और तेज होगा, एेसी उम्मीद है ।

    नए साल का हर पल लेकर आए नई खुशियां । आंखों में बसे सारे सपने पूरे हों । सूरज की िकरणों की तरह फैले आपकी यश कीितॆ । नए साल की हािदॆक शुभकामनाएं-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं

आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है